१–रूढ़यौवना
सवैया
राधिका सी सुर सिद्ध सुता, नर नाग सुता कवि देव न भूपर।
चन्द करौं मुख देखि निछावरि, केहरि कोटि लटो कटि ऊपर॥
काम कमानहुँ को भृकुटीन पै, मीन मृगीनहूँ को दृगदू पर॥
बारों री कञ्चन कञ्ज कली, पिक बैनी के ओछे उरोजन ऊपर॥
शब्दार्थ—चन्द करौं...निछावरि–मुख पर चन्द्रमा को निछावर कर दूँ। मीन–मछली। मृगीन–हिरनियाँ। दृगदू पर–दोनों आँखों पर। कञ्चन–सोना। ओछे–छोटे। उरोज–कुच।
२–प्रादुर्भूति मनोभवा
सवैया
बाल बधू के बिचार यही, जु गुपाल की ओर चितैवोइ कीजै।
त्यो चितवै चित चातुरी सों, रुचि की रचना बचनामृत पीजै॥
भूषन भेष बनावै सबै, अरु केसर के रँग सो अँग मींजै।
आपने आगे औ पीछे तिरीछे, है देह को देखि सनेह सों भींजै॥
शब्दार्थ—चितैवोइ कीजै–देखती ही रहूँ।
३–प्रगल्भवचना
सवैया
मेरेऊ अङ्क जो आवै निसङ्क तौ, हौं उनके परजङ्कहि जैहौं।
पान खबाइ उन्हें पहिलैं तब, नाथ के हाथ के पाननि खैंहों॥