उदाहरण दूसरा
सवैया
देव कहै बिन कन्त बसन्त न, जांउ कहूँ घर बैठि रहौरी।
हूक हिये पिक कूक सुने विष, पुज निकुजनी गुजति भौंरी॥
नूतन नूतन के बन बेषन, देखन जाती तौ हौं दुरि दोरी।
बीर बुरौमति मानो बलाइ ल्यों, होहुगी बौर निहारत बौरी॥
शब्दार्थ—बिन कन्त—पति के बिना। हूक...कूकसुने—कोपल की बोली सुनतेही हृदय में हूक उठती है। विषपुँज भौंरी—कुंजों में यह विषैली भ्रमरी गूंजती फिरती है। वीर...ल्यों—हे सखी तुम्हारी बलैयां लूं तुम मेरे बाहर न जाने का बुरा मत मानो। होहुगी...बौरी—क्योकि बौर देखते ही मैं पागल सी हो जाँऊगी।
उदाहरण तीसरा
कवित्त
जागी न जुन्हैया यह आगी मदनज्वर की,
लागी लोक तीनों हियो हेरें हहरतु है।
पारि पर जारि जल-जन्तु जारि बारि बारि
बारिधि ह्वै बाडब पताल पसरतु है॥
धरती तें धाइ झर फूटी नभ जाइ,
कहै देव जाइ जोवत जगत ज्योंजरतु है।
तारे चिनगारे ऐसे चमकत चारौं ओर,
बैरी बिधुमण्डल वभूकौ सो बरतु है।