पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/९३

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बाद उसने बङ्गाल, ठठा या सिंध का इलाक़ा फ़तह किया। इसी बीच में बादशाह के पुत्र सलीम ने विद्रोह किया पर वह कैद कर लिया गया। इसके बाद उसने फतहपुर सीकरी और आगरा बसाया, क्योंकि मथुरा साम्राज्य के विद्रोह का एक मज़बूत अड्डा था। कहा जाता है उसने आगरे के महल और किला ताम्बे का बनाने का इरादा किया था परन्तु कारीगरों के सहमत न होने से लाल पत्थर के बनवाये। बादशाह को मस्त हाथियों की लड़ाई का बहुत शौक था, वह स्वयं बेधड़क ऐसे हाथियों पर सवार होता जिसमें प्राणों का बड़ा भारी भय था। अकबर को छोटे छोटे विद्रोहों को दबाने में बार-बार बहुत परिश्रम उठाना पड़ा। इन विद्रोहियों को पकड़ कर बहुधा इनके सर काट डाले जाते थे। 'मनूची' योरोपियन ग्रंथकार लिखता है---

"ये सर चौबीस घण्टे शाही दालान में रखे रहकर मार्ग में दरख्तों या मीनारों में लटका देने को भेज दिये जाते थे। मीनारें ख़ास तौर पर इसी काम के लिये बनाई गई थीं। हर एक मीनार में सौ सर आ सकते थे। शहर के बाहर मैंने कई बार इनमें चोर देहातियों के सर देखे हैं जो अपनी बड़ी-बड़ी मूँछों, लाल रङ्ग और मुड़े हुए सर से पहचाने जाते हैं!...आगरे से देहली जाती बार रास्ते में सड़कों पर वध किये डाकुओं के इतने सर लटके हुए थे कि बदबू के मारे सर फटा जाता था और मार्ग चलने वालों को नाटक पर कपड़ा देकर रास्ता तै करना पड़ता था।"

अन्त में उसने पठानों पर चढ़ाई की। अस्सी हजार सेना प्रथम बार भेजी गई। पठान बड़े लड़ाके और योद्धा होते हैं। पठानों ने ऐसा मोर्चा लिया कि एक भी सैनिक जीता बचकर न आया। पथ-प्रदर्शक उन्हें खैबर की घाटी में घुसाकर ग़लत मार्ग में ले गये और नष्ट कर दिया। इस बादशाह ने तोपख़ाने की उन्नति की और फिरङ्गी तोपची रक्खे। एक बार ऐसी घटना हुई कि उसने तोपों की चाँदमारी की ठानी। प्रधान तोपची जो ५००) वेतन पाता था बुलाया गया। जमना पर चादर तानी गई, पर तोपची ने जान बूझ कर ग़लत गोला चलाया। बादशाह ने क्रुद्ध हाकर उसे सम्मुख बुलाया और कहा---

बादशाह---"क्या तुम ऐसे ही निशानेबाज हो? तुम्हारी तो बहुत तारीफ़ सुनी थी।"