उस समय दिल्ली के तख्त पर मोहम्मद तुगलक था। तैमूर बिना रोक टोक सेना की सहायता से सिन्धु महानद को उतर आया और तेजी से आगे बढ़ने लगा। जिस प्रदेश और नगरी में गुजरता उसी को लूटता हुआ, घरों को जलाता, निरपराध स्त्री-पुरुषों को क़ैद करता बढ़ा चला आया। भटनेर में उसने एक घण्टे में दस हजार हिन्दुओं को क़त्ल किया। दिल्ली पहुँचते-पहुँचते एक लाख कैदी उसके साथ हो गये। उन्हें भोजन देना अब कठिन हो गया तब हुक्म दिया कि पन्द्रह वर्ष की अवस्था से अधिक के स्त्री-पुरुष क़ैदी क़त्ल कर दिये जाँय। लाशों का ढेर लग गया और खून की नदी बह गई। पठानों की कायर और आलसी सेना शीघ्र ही छिन्न-भिन्न हो गई। दिल्ली में तैमूर ने प्रवेश किया। बादशाह गुजरात भाग गया। दिल्ली वालों ने अभय वचन लेकर द्वार खोल दिया और आत्मसमर्पण किया। भीतर घुसते ही पाँच दिन तक तैमूर ने कत्ले-आम कराया। धाँय-धाँय, नगर भस्म होने लगा। लूट, हत्या, सतीत्व नाश और नरहत्या का अखण्ड राज्य पाँच दिन तक चला। तैमूरी सेना के एक-एक आदमी ने सौ-सौ नागरिकों को ध्वंस किया और एक लाख आदमी कत्ल करके फिरोजशाही मस्जिद में सोलहवीं नमाज पढ़ी। तैमूर ने अपने विजय उत्सव के ये दिन सुरा और सुन्दरी-सेवन में व्यतीत किये। दिल्ली से उसने मेरठ पर धावा बोल दिया और पहुँचते ही हिन्दुओं का सिर काटना शुरू कर दिया। पचास हज़ार स्त्री पुरुष क़त्ल कर दिये, और हजारों जवान स्त्री और बच्चे क़ैद कर लिये। प्रत्येक सिपाही के हिस्से में बीस से लेकर सौ क़ैदी तक आये थे। यहाँ से वह हरद्वार गया---वहाँ गंगा का पर्व था---बहुत भीड़ थी---उसने मेले में क़त्लेआम बोल दिया---गंगा का जल खून से लाल हो गया। फरिश्ता लिखता है---
"मुग़ल सेना लूटने की लालसा से महा नगरी दिल्ली के भिन्न-भिन्न स्थानों पर पागल की भाँति छूटी थी। लूटे हुए द्रव्य को उठाना कठिन हो गया था। वे लोग जाति, आयु, धर्म किसी का भी खयाल न करके सबको क़त्ल करते थे। मुर्दो से सड़कें रुक गई थीं। वह भयंकर दृश्य वर्णन करना अशक्य है। अनुमानतः एक लाख नर-नारी इन पाँच दिनों में दिल्ली में मारे गये थे। तैमूर अन्त में महामारी, दुर्भिक्ष और अराजकता भारत में छोड़कर