पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/७७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६८
 

वड़ के मैदान में दोनों सेनाएँ छावनी डालकर पड़ गई, मुहम्मद ग़ौरी ने छल करके कुछ अवकाश माँगा और भयभीत होने का बहाना किया। फिर एक दिन रात को अचानक छापा मारा, चौहान झटपट तैयार होकर लड़ने लगे। मुसलमानों के पैर उखड़ गये, वे भागने को ही थे कि सोलंकियों ने और गहरवारों ने पीछे से धावा बोल दिया, मुसलमान फिर लौट पड़े। समरसिंह मारे गये। पृथ्वीराज पकड़े गये और मुहम्मद ग़ौरी ने इन्हें कत्ल करवा दिया। इस प्रकार दिल्ली के पतन के साथ भारत के हिन्दू साम्राज्य की तक़दीर का फैसला हो गया। और सदा के लिये हिन्दुओं का दीप निर्वाण हो गया।

इसके दूसरे ही वर्ष उसने कन्नौज पर धावा बोल दिया। उस समय जयचन्द की सेना में पचास हज़ार सवार मुसलमान थे। वे ठीक युद्ध के समय उलट पड़े और राजा की सेना को काटने लगे। राठौरों की सेना तितर-बितर हो गई और जयचन्द कुतुबुद्दीन एवक का तीर खाकर घोड़े समेत गंगा में गिर गया और डूब गया। कन्नौज पर उसका अधिकार हो गया। इसने कन्नौज में एक हजार मन्दिर तुड़वाये। लूट का सोना और चाँदी चार हज़ार ऊँटों पर लादकर अफ़गानिस्तान ले गया। वह सब लूट का माल और लाखों स्त्री पुरुषों को ग़ुलाम बनाकर साथ ले गया तथा अपने सेनापति कुतुबुद्दीन को दिल्ली का राज्य दे गया। यह कुतुबुद्दीन शाहबुद्दीन का ग़ुलाम था। वही ग़ुलाम प्राचीन भारत की क़िस्मत का विधाता बना और भारत में मुसलमानी राज्य की जड़ जमी।