जिनके शरीर पर ग्यारह रत्न थे। मदुरा से वह इतने गुलाम बनाकर ले गया कि मुहम्मद अल उटवी ने लिखा है कि महमूद ने एक-एक गुलाम ढाई रुपये को बेचना चाहा पर खरीदार न मिले। मदुरा को देखकर महमूद ने खुद कहा था कि यहाँ हजारों महल विश्वासी के विश्वास की भाँति दृढ़भाव से खड़े हैं जो संगमर्मर के बने हैं। यहाँ अनगनित हिन्दू मन्दिर हैं। अनन्त धन खर्च किये बिना नगरी इतनी सुन्दर नहीं बन सकती। दो सौ वर्ष के यत्न और परिश्रम बिना ऐसी नगरी का निर्माण भी नहीं हो सकता।
इसके बाद इसने गुजरात का प्रसिद्ध सोमनाथ का मन्दिर लूटा। यह विशाल मन्दिर छप्पन खम्भों पर आधारित था जिनमें अनगनित बहुमूल्य रत्न लगे थे। चालीस मन भारी सोने की जंजीर से एक भारी घन्टा लटक रहा था। उसमें पाँच गज ऊंची शिवमूर्ति अधर थी। उसे अपने हाथों से तोड़कर असंख्य रत्नों का ढेर महमूद ने लूट लिया और उस मूर्ति को गजनी ले गया। उसके टुकड़े-टुकड़े करके एक टुकड़ा मस्जिद की सीढ़ियों और एक अपने महल की सीढ़ियों में लगा दिया। और उस मन्दिर के स्थान पर एक मस्जिद बनवा दी जो अब तक बनी है।
सुदूर गजनी से सिन्धु नदी को पार करके उजाड़ रेगिस्तान में होकर गुजरना और इस तरह गुजरात के दक्षिण तक भारी-भारी धावे मारना कम आश्चर्य की बात नहीं। परन्तु इससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह है कि सिवाय दो चार राजाओं के और किसी ने उसे रोकने की चेष्टा तक नहीं की। इसका कारण तात्कालिक सामाजिक परिस्थिति की हीनता थी। जिसका वर्णन अलबरूनी---जो महमूद के आक्रमण में उसके साथ था---इस प्रकार करता है---
"भारत बहुत छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त है। सब राज्य स्वतन्त्र हैं और परस्पर युद्ध में प्रवृत्त रहते हैं। ब्राह्मण अपने अधिकारों की रक्षा के लिए इतने व्याकुल हैं, और जाति-भेद का ऐसा द्वेष भाव फैल रहे हैं कि वैश्यों और शूद्रों को वेद पाठ करते देखकर ब्राह्मण उन पर तलवार लेकर टूट पड़ते हैं। और उन्हें राज कचहरी में उपस्थित करते हैं जहाँ उनकी जिह्वा काट ली जाती है। ब्राह्मण सब प्रकार के राज कर से मुक्त हैं। हिन्दू बालाएँ सती हो जाती हैं। हिन्दू किसी देश को नहीं जाते, किसी जाति की