पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/७३

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खूब उन्नत हो रहा था। मुसलमानों का इतना मान था कि उन दिनों हिन्दू राजाओं की ओर से मुसलमान एलची और राजदूत दूर देश चीन तक के दर्बार में भेजे जाते थे। मन्त्री और महामन्त्री के पद पर तो बहुत से मुसलमान थे। हिन्दू राजाओं की ओर से प्रान्तों के शासक मुसलमान नियत किये जाते थे और हिन्दू राजाओं के आधीन बड़ी-बड़ी मुसलमान सेनाएँ थीं।

गुजरात के बल्लभी राजा बलहार ने अपने राज्य के अन्दर मुसल- मानों का बड़े उत्साह से स्वागत किया था। काठियावाड़, कोकण और मध्य भारत के सभ्य हिन्दू राजाओं ने भी मुसलमान साधुओं का ख़ासा सत्कार किया था और उन्हें अपने राज्य में इस्लाम प्रचार में काफी सहायता दी थी। हिन्दू राजा इन मुसलमानों का इतना लिहाज़ करते थे कि एक बार खम्भात में जब हिन्दुओं ने मुसलमानों की मसज़िद गिरा दी थी। तब राजा ने हिन्दुओं को भारी दण्ड दिया और अपने ख़र्च से मसज़िद फिर बनवा दी।

ग्यारहवीं शताब्दी में वोहरों के गुरु यमन से आकर गुजरात में बसे। ये शिया सम्प्रदाय के थे। इससे प्रथम ही वहाँ मुरुद्दीन ने गुजरात के बहुत से कुनवियों, खेरवाओं और काड़ियों को इस्लाम में शामिल कर लिया था। अभिप्राय यह है कि आठवीं शताब्दी से लेकर पन्द्रह वीं शताब्दी तक बराबर समस्त भारत में मुसलमान साधु-संत अपने धर्म का प्रचार करते रहे और लाखों हिन्दुओं को मुसलमान बनाया। इस समय तक भारतीयों पर इस्लाम का कोई राजनैतिक प्रभाव नहीं पड़ा था।

भारत पर क़ासिम के लगभग तीन सौ वर्ष बाद महमूद ने लूट का लालच देकर असंख्य बर्बरों को इकट्ठा कर धावा बोल दिया। इसने निरन्तर तीस बरस तक भारत पर आक्रमण किये और सत्रह बार पश्मिोत्तर भारत को तलवार और अग्नि से विध्वंस किया। इसने नगरकोट का मंदिर तोड़कर इसमें से सात सौ मन सोना चाँदी के बर्तन, सात सौ चालीस मन सोना, दो हज़ार मन चाँदी और बीस मन हीरा मोती जवाहरात लूटे थे। थानेश्वर के आक्रमण में यह दो लाख हिन्दुओं को क़ैदी बनाकर ले गया। फरिश्ता लिखता है कि उस समय गज़नी शहर हिन्दुओं की सी नगरी मालूम देता था। मदुरा को लूट में उसने छः मूर्ति ठोस सोने की पाई।