सानीनी रक्खा गया और अरब को चला गया, और वहाँ से उसने मलिक इब्ने दीनार, शर्क़ इब्न मलिक, मलिक इब्न हबीब को मालाबार भेजा। इन्होंने ग्यारह स्थानों पर मस्जिदें बनाई और इस्लाम का प्रचार किया।
राजा वहाँ से नहीं लौटा। चार साल बाद मर गया। पर आज भी जब ज़मोरिन सिंहासन पर बैठाया जाता है उसका सिर मूँडा जाता है और उसे मुसलमानी लिबास पहनाया जाता है। एक मोपला उसके सिर पर मुकुट रखता है। राज्याभिषेक के बाद वह जाति से बहिष्कृत हो जाता है। वह न तो अपने परिवार के साथ खा सकता है, न नायर लोग उसका छूआ खाते हैं। यह समझा जाता है कि ज़मोरिन अन्तिम चेरमन---पेरूमल का प्रतिनिधि है और उसके लौटने की प्रतीक्षा कर रहा है। अब भी जब कालीकट और ट्रावनकोर महाराज अभिषेक के समय तलवार कमर में बाँधते हैं तब यह घोषणा करते हैं कि मैं इस तलवार को उस समय तक रखूँगा जब तक कि मेरा चाचा जो मक्के गया है, लौट न आयेगा।
दक्षिण के मोपले उन्हीं मुसलमानों के वंशधर हैं। उस समय उनका बड़ा महत्व था। मोपला महा-पिल्ला का अपभ्रंश है। मोपला का अर्थ है "ज्येष्ठ पुत्र या दूल्हा"। उन्हें बड़े अधिकार प्राप्त थे। मोपला नाम्बूतरी ब्राह्मणों के बराबर बैठ सकता था यद्यपि नायर ऐसा नहीं कर सकता था। मोपलों का गुरु थंगल राजा के साथ पालकी पर सवारी कर सकता था।
ज़मोरिन की कृपा से बहुत से अरब के व्यापारी उसके राज्य में बस गये। राज्य को उनके व्यापार से अर्थ लाभ भी था, साथ ही वे अपने पराक्रम से आसपास के राजाओं को परास्त करके उनकी ज़मीनों पर राजा का अधिकार करा देते थे। जहाँ जहाँ राजा का अधिकार होता, मुसलमान व्यापारियों की मण्डियाँ भी स्थापित हो जातीं। कालीकट के बन्दरगाह की नींव इसी प्रकार पड़ी थी। राजा ने आज्ञा प्रचारित की थी कि मक्कवान जाति के प्रत्येक मल्लाह परिवार में से एक या अधिक आदमी इस्लाम धर्म ग्रहण करें। इसका फल यह हुआ कि जब मसूदी ने दसवीं शताब्दी में भारत की यात्रा की तब दस हजार मुसलमानों की बस्ती उसने चौल में पाई थी। इब्न बतूता ने खंभात से मालाबार तक सर्वत्र मुसलमानों की अच्छी आबादी देखी थी और वे अच्छी हालत में थे।