सेनाऐं जङ्गलों, मैदानों, पहाड़ों और नदियों को पार करती हुई भारत की सीमा तक पहुँच गईं। उन्होंने ईरान के बेड़ों को सदैव के लिए समुद्र में समाधि दे दी थी और भारत महासागर पर अपना एकाधिपत्य जमा लिया था। साथ ही हिन्द महासागर के व्यापार को भी सर्वथा हथिया लिया था।
मुसलमानों का पहला बेड़ा सन् ६३० में उमर की ख़िलाफ़त में हिन्दुस्तान में आया। उस समय उस्मान सक्रीफ़ी वहरैन का सूबेदार था। और उसने एक सेना समुद्री रास्ते से थाने के बन्दर भेजी। ख़लीफ़ा ने इस बात को पसन्द नहीं किया। और भविष्य में ऐसा न करने की ताकीद करदी। पर उस्मान की ख़िलाफ़त में भारत की ओर फिर कई फौजी दस्ते आये, पर विफल मनोरथ लौट गये।
सातवीं शताब्दी के मध्य में जबकि मध्य एशिया और योरोप में मुसलिम सत्ता अपना प्रताप दिखा रही थी, भारत में सम्राट हर्षवर्धन की सत्ता का अन्त हो रहा था। उत्तरीय भारत का साम्राज्य टुकड़े-टुकड़े हो रहा था। कुछ पुरानी कुछ नई जातियों ने नवीन राजपूत शक्ति बनाकर पच्छिम से चलकर उत्तर पूर्वीय तथा मध्यभारत में अनेक छोटी-छोटी रियासतें क़ायम करली थीं। और मुसलमानों के प्रथम आक्रमण के पूर्व ही वे पंजाब से दक्षिण तक और बंगाल से अरब सागर तक प्रदेश को अधिकृत कर चुके थे। परन्तु कोई प्रधान शक्ति इनको वश में करने वाली न थी। और आये दिन इन के परस्पर संग्राम होते थे। पुराने साम्राज्यों की राजधानियाँ खण्डहर हो गई थीं।
ऐसी दशा में धर्म क्षेत्र में भारत का पतन होना स्वाभाविक था, बौद्धों ने ब्राह्मण धर्म और उच्चजति के विशेषाधिकारों को कुचल डाला था, उसके प्रतिफल स्वरूप ब्राह्मणों ने इन नवीन शासकों की सहायता से फिर पुराने ब्राह्मण धर्म को नये रूप में खड़ा किया। वेद के रुद्र देवता शिव की मूर्ति बन गये थे। आर अब हिन्दू और बौद्ध प्रतिमा-पूजन और कर्म-काण्ड के प्रपंच में फिर फँस गये थे। कनिष्क के प्रयत्न से उत्तरीय भारत में महायान सम्प्रदाय की नींव जम गई थी, जिसमें बौधि-सत्वों की पूजा होती तथा बौद्ध मन्दिरों का समस्त कर्म -काण्ड हिन्दू मन्दिरों के ढंग पर