पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/५६

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दूसरी खूबी यह थी कि उसके नियम सरल, सुसाध्य और आकर्षक थे। फिर भी जैसा जातियों की जागृति के समय हुआ करता है मुहम्मद साहब की मृत्यु के थोड़े ही दिन बाद से इस्लाम की नई-नई शाखायें फूटने लगी थी। जिस प्रकार अरब के विजेताओं ने पूर्व और पश्चिम में अपने साम्राज्य की विस्तार किया उसी प्रकार अरब के विद्वानों और साधुओं ने संसार भर के दर्शन, विज्ञान और विद्याओं को खोज-खोज कर अपने भण्डार को बढ़ाना प्रारम्भ किया। दर्जनों ईसाई धर्म-ग्रन्थ अरबी में अनुवाद किये गये। सुकरात, अफ़लातून, अरस्तू के गम्भीर दर्शन शास्त्रों, भारत के विज्ञान, वैद्यक, ज्योतिष आदि के विषयों की सहस्रों पुस्तकों का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ। भारत के साथ अरबों का सम्बन्ध नया न था---करोड़ों रुपए का व्यापार होता था---उसी व्यापार के साथ भारतीय संस्कृति की भारी छाप अरबी समाज पर लग गई थी। प्रारम्भिक ख़लीफ़ाओं के काल में बसरा में उच्च पदों पर हिन्दू नौकर थे। शाम कासगर में हिन्दू व्यापारियों की कोठियाँ थीं। खुरासन, अफ़गानिस्तान, सीसतान और बिलोचिस्तान इस्लाम मत स्वीकार करने से पहले बौद्ध थे। बलख में एक बहुत बड़ा बौद्ध बिहार था, जिसके मठाधीश अव्वासी ख़लीफ़ाओं के वज़ीर हुआ करते थे। अनेकों बौद्ध मत की किताबों के अनुवाद अरबी भाषा में हुए। कितावुलवुद, और विलवहर वा बुदसिफ सुश्रुतचरक, निदान, पंचतन्त्र, हितोपदेश, चाणक्य आदि अनेक संस्कृत ग्रन्थ अरबी में अनुवाद किये गये। फलतः बुद्ध की शिक्षाओं सौर विचारों का अरब के मुसलमानों पर भारी प्रभाव पड़ा। धीरे-धीरे अरबों में स्वतन्त्र विचारों का नये-नये दार्शनिक और धार्मिक भावनाओं का उदय हुआ।

उन्हीं दिनों मुसलमानों के 'शिया' सम्प्रदाय का जन्म हुआ। इसे 'ग़लात' के ख़लीफ़ाओं ने प्रचलित किया और प्रचलित मुसलमान धर्म से इसमें यह विशेषता थी कि अवतारवाद (हुलूलतशवीह) आवागमन (तनासुख) को सिद्धान्तों में स्थान दिया गया और यह सिद्ध किया गया कि बढ़ते-बढ़ते मनुष्य खुदा के रुतवे पर पहुँच सकता है।

'अली इलाई सम्प्रदाय में एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करना तथा तलाक़ की प्रथा को नाजाइज़ क़रार दिया। मसजिद में जाने तथा शारीरिक