पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/५

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वाली जातियों ने इस्लाम अंगीकार किया, राजनैतिक क्षेत्र में पड़ कर तथा राजसत्ता के लालच में कुछ राजपूतों की जातियाँ भी कहीं-कहीं मुसलमान बनीं, परन्तु भारत की हिन्दू जाति ने मुसलमानों से धर्म युद्ध में निरन्तर आठ सौ वर्षों तक बिना शस्त्र के भारी मोर्चा लिया और पराजय स्वीकार नहीं की। यह हिन्दू धर्म की उस संगठित शक्ति का प्रभाव था जिसके मूल में आध्यात्म का सांस्कृतिक पुट था।

पठानों के राज्य-काल में जायसी और उसके अनुवर्ती सूफी कवियों ने अवधी और ब्रजभाषा में प्रेम काव्य रचे थे। परन्तु उसमें और इस साहित्य में अन्तर था। उसमें भाषा ही लोक भाषा थी। उसमें न तो हिन्दू संस्कृति थी, न हिन्दू मुस्लिम एक्य भावना थी। यह सूफी मुस्लिम फकीरों का हिन्दू जनता पूज्य विश्वासपात्र और आध्यात्मिक गुरु बनने के लिए एक प्रयास था। उनकी कविता में हिन्दू-चरित्र तो अवश्य थे, परन्तु उनमें न हिन्दू धर्म तत्त्व था, न कविता की काव्य परिपाटी ही हिन्दू भावना से संश्लिष्ट थी। इन रचनाओं में प्रचलित हिन्दू-चरित्र प्रधान दन्त कथाएँ कहकर उनमें अपने सूफी तत्त्व की फिलासफी आरोपित की गई थी। इस प्रकार वे अक्षुण्ण मुस्लिम सन्त रहते हुए भी हिन्दू जनता के पीर बने रहना चाहते थे।

परन्तु सबसे पहिले रसखान के रूप में मुस्लिम हृदय ने हिन्दू धर्म तत्त्व और हिन्दू इष्ट देवता के आगे सिर झुकाया। आगे चलकर मुस्लिम कवियों में यह परम्परा बढ़ती ही गई। आलम और रसखान से यह हिन्दू-धर्म तत्त्व के प्रति जो आकर्षण प्रारम्भ हुआ सो यह शताब्दियों तक आगरे के प्रसिद्ध कवि नजीर को भी लाँघता हुआ चला ही गया।

परन्तु अकबर ने इतना ही नहीं किया। उसने ठोस कार्य में आगे हाथ बढ़ाया। जहाँ उसने सब हिन्दू राजाओं से घनिष्ठ और मित्रतापूर्ण राजनैतिक सम्बन्ध स्थापित किये तथा हिन्दू मुस्लिम राजपुरुषों को बिना पक्षपात के अपनी राज्य-व्यवस्था में स्थान दिया, वहाँ उसने कट्टर मुस्लिम धर्म के स्थान पर स्वयं एक नवीन धर्म की स्थापना का भी साहस किया। इसके साथ ही उसने हिन्दू राजाओं से रिश्तेदारी करनी भी प्रारम्भ की। खेद है कि तत्कालीन हिन्दुओं ने महान् अकबर के इस मंत्री निमन्त्रण को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने राजनैतिक दबाब में पड़कर लड़कियाँ शाही परिवार को दीं---परन्तु ली नहीं छुआछूत का भूत उनका बाधक था। ब्राह्मणों का अनुशासन उनके सिर पर था। लड़की देने की मर्यादा भी शाही परिवार तक ही सीमित रही। सर्वसाधारण में रोटी-बेटी का चलन हिन्दू-मुस्लिमों में नहीं जारी हुआ। यह भारत के निवासियों का दुर्भाग्य था। फिर भी अकबर के बाद जहाँगीर और शाहजहाँ के काल तक सौ वर्षों में मुस्लिम संस्कृति ने भारतीयता का रूप धारण कर लिया। यह सौ वर्ष का समय दोनों जातियों को एक हो जाने के लिए बहुत था।

सांस्कृतिक, राजनैतिक और सामाजिक भावनाओं में मुग़ल सम्राटों ने जितने प्रयत्न हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य भावना के किये, उसका न तो हिन्दू जनता ने स्वागत किया