पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/४१

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लगे। अन्त में उसका दिल भर आया और वह चला गया। एक-एक आदमी जाता और मरता था। अन्त में हुसेन बहुत से घाव खाकर गिरा और एक सैनिक ने उसका सिर काट लिया। यह लड़ाई कर्वला में हुई जिसमें हुसेन के सतत्तर और शत्रु के बयासी आदमी मारे गये। हुसेन के मारे जाने पर उसका सारा माल-असबाब लूट लिया गया। उमर हुसेन का सिर लिए रात को कोफा अपने घर में पहुँचे तो उसकी स्त्री ने कहा---पाजी कुत्ते मुझे मुँह न दिखा। यह कह कर घर से निकल गई और सारी उमर उसका मुँह न देखा। दूसरे दिन जब अब्दुल्ला के सामने हुसेन का सिर रखा गया तो उसने उस पर थूका और ठोकर मारकर एक तरफ़ को फेंक दिया।

इसके बाद उसने सब स्त्री-बच्चों को क़त्ल का हुक्म दे दिया। पर सरदारों के मना करने पर उन्हें हुसेन के सिर के साथ यज़ीद के पास भेज दिया। यज़ीद ने उन्हें खातिर से रखा और कुछ दिन बाद मदीने पहुँचा दिया। इसी घटना का शोक मुसलमान दस दिन तक मुहर्रमों में मनाते हैं।

अब इस शत्रु को नष्ट कर वह अब्दुल्ला इब्ने ज़वीर की तरफ़ मुड़ा। क्योंकि उसे मक्का और मदीने वालों ने अपना ख़लीफ़ा बना लिया था। यज़ीद के सम्बन्ध में इतने अपवाद फैल गए थे कि सारा अरब उसका विरोधी होगया था। यह सब सुन कर यजीद ने मदीने पर सेना भेजने की तैयारी की पर कोई सेनापति राजी न हुआ। अन्त में मुस्लिम इब्ने अक़बा ने मन्जूर किया और बारह हजार सवार और पाँच हजार पैदल लेकर मदीने की तरफ़ बढ़ा। पहले तो उसने सबको समझाया। अन्त में युद्ध हुआ। मदीने वाले भाग निकले। और मुसलिम नंगी तलवार लिए नगर में घुस गए। सबसे पहले अली इब्ने हुसेन को ऊँट पर सवार कुछ सिपाहियों सहित शहर से बाहर भेज दिया। फिर बनी उम्पा के एक हज़ार आदमियों को, जो मखान के घर में थे अपने पास बुलवा लिया। फिर शहर में लूटमार और कत्ले आम का हुक्म दे दिया। हज़ारों मारे गए, हज़ारों कैद हुए। मदीने को वह इस प्रकार ईंट से ईंट बजाकर वह मक्के की तरफ गया। पर मार्ग में ही मारा गया। तब हसीन इब्ने हमीर सेनापति बना और जब यह मक्का पहुँचा तो अब्दुल्ला इब्ने ज़बीर मुक़ाबिले में आया और शीघ्र ही परास्त हुआ। हसीन ने नगर में घुसते ही काबे पर हाथ साफ किया और उसे मिट्टी में मिला