पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/३७

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लगे। गाली-गलोज का यह रिवाज जुमे की नमाज़ के पीछे अब तक चला आता है।

अब एक तीसरा और सम्प्रदाय खड़ा हुआ, जिसका नाम खार्ची था। अब्दुल्ला इब्ने-बहब इसका ख़लीफ़ा बना। इस दल में पच्चीस हजार आदमी थे। इस पर अली ने एक झण्डा खड़ा करके घोषणा की कि जो अमुक समय तक इसके नीचे चला आयगा, क्षमा किया जावेगा। इस पर इक्कीस हज़ार आदमी चले आए। बाकी चार हज़ार अब्दुल्ला के पास बच रहे, जो वीरता से लड़ कर काम आये। सिर्फ ९ आदमी जिन्दा बचे।

उधर मुआबिया ने मिस्र में विद्रोह फैला दिया। अली साठ हज़ार सेना लेकर मिस्र पर चला। वे जो नौ खार्ची बचे थे उन्होंने निश्चय किया कि अमर, अली और मुआबिया, ये ही मुस्लिम-विद्रोह की जड़ हैं, इसलिए इन तीनों को एक साथ ही क़त्ल कर देना चाहिए। तीन आदमियों ने यह काम अपने ऊपर लिया। अमर और मुआबिया तो किसी भाँति बच गए, पर अली पर कोफ़ा में अब्दुलरहमान ने नमाज़ पढ़ते वक्त वार किया, जिससे उसकी खोपड़ी फट गई और तीन दिन के बाद, तिरसठ वर्ष की आयु में वह मर गया। उसके पन्द्रह पुत्र और सोलह पुत्रियाँ थीं। अली के पक्ष वाले 'शीआ' कहलाते हैं और वे इसके पूर्व के तीनों ख़लीफ़ाओं को मानने से इन्कार करते हैं। और मुहम्मद साहब के बाद अली ही को ख़लीफ़ा मानते हैं। कहा जाता है कि अली का जन्म काबे में हुआ था।