पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/३५५

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'मुसलमानों एशिया के साम्राज्य का बोझ सहन नहीं कर सकती थी। परन्तु टूटता हुआ अंगरेजी साम्राज्यवाद भारतवर्ष को छोड़कर आत्मघात भी कैसे कर सकता था। उसने भारतवर्ष को जहर की एक वही डोज़ दी जिससे योरोप का सर्वनाश हुआ । दुर्भाग्य से भारत ने राष्ट्रीयता के सिद्धान्त को अपना लिया और अंगरेज़ों के गुरगों को ऐसे अवसर मिल गये कि वे को उत्त जित करें कि वे हिन्दुस्तान के राष्ट्र में सम्मिलित न हों और वे अपना पृथक् एक राष्ट्र निर्माण करें। मुहम्मद अली जिन्ना एक महा मेधावी और तेजस्वी मुसलमान था । यह दूसरा मुसलमान था जो सर सैय्यद के बाद उत्पन्न हुआ। उसकी आत्मनिष्ठा और दृढ़ता का अन्त न था। उसने स्पस्ट घोषणा की कि मुसल- मान अल्पसंख्यक नहीं हैं। उनका पृथक् राष्ट्र है। उसकी पृथक् सभ्यता है, पृथक् संस्कृति है। उसमें हिन्दुओं का कोई हिस्सा नहीं है। हिन्दुओं से उनका कोई मेल, साझा या समझौता नहीं हो सकता । और उन्हें पृथक् देश पाकिस्तान चाहिये । मुस्लिम-बहु प्रदेश पाकिस्तान कहे जाने चाहिये । हिन्दुओं को जिन्ना की यह माँग पसन्द न होना स्वाभाविक था। परन्तु जिन्ना एक इंच भर भी अपने स्थान से टस से मस न हुआ। और यह अंगरेज़ों के कौशल और कूटनीति का चरम विकास था कि उसने कांग्रेस के द्वारा जो राजनैतिक आधारों पर और सांस्कृतिक आधारों पर भी हिन्दू- मुस्लिम एकता की प्रचारक और समर्थक थी, हिन्दू मुस्लिम द्विराष्ट्र सिद्धान्त स्वीकार करा लिया। कांग्रेस के द्वारा विभाजन को स्वीकार करा लेने के बाद तत्काल ही अंगरेज़ों ने भारत को छोड़ दिया और दुनिया ने देख लिया कि मानव के इतिहास में अनहोनी घटना होगई । साठ लाख स्त्री-पुरुषों का अयाचित, अकल्पित अतर्कित महानिष्क्रमण हुआ। और लगभग एक करोड़ प्राणियों के रक्त से पृथ्वी ने स्नान किया । बड़े से बड़े भयानक महायुद्ध भी ऐसे भयानक परिणाम नहीं लाये थे। आज भी भारत और इस्लाम यह प्रश्न वैसा ही महत्वपूर्ण और उलझन से भरा हुआ है जैसा कि उस समय था जबकि अंगरेज़ भारत को छोड़ गये थे। लाखों आदमियों के खून, क़त्ल, अग्निदाह और ध्वंस का उस पर कोई असर नहीं पड़ा है। -