होगए और मिस्र में ग़दर मच गया। बादशाह कान्स्टेन्टाइन ने सिकन्दरिया को छीन लिया। मुसलमान वहाँ से मार भगाए गए। तब फिर उस्मान भेजा गया। इसने सिकन्दरिया को फिर छीना। पर ख़लीफ़ा ने फिर अब्दुल्ला को भेज दिया। इस बार उसने उत्तर अफ्रीका पर धावा बोलने का निश्चय किया और चालीस हजार सेना लेकर त्रिपली पर छावनी डाल दी। उधर से जनरल ग्रेगरस एक लाख बीस हज़ार रोमन्स सेना लेकर मुकाबले में आ डटा। कई दिनों तक घमासान युद्ध होता रहा। अन्त में एक दिन धोखे से ग्रेगरस मार डाला गया और उसकी युवती कन्या कैद कर ली गई। सेना भाग गई और नगर पर अधिकार कर लिया।
मुहम्मद साहब पढ़े लिखे न थे। वे अपनी चाँदी की मुहर वाली अँगूठी को दस्तखत की भाँति काम में लाते थे, जिस पर मुहम्मद रसूलल्लाह खुदा था। यही अँगूठी पूर्व के दोनों ख़लीफ़ा काम में लाते रहे परन्तु इस ख़लीफ़ा ने उसे खो दी।
इस ख़लीफ़ा ने क़ुरान की प्रतियों का मुहम्मद साहब की स्त्री हफ़सा की प्रति से मुकाबला कराया। जिनमें पाठ भेद था उन्हें जलवा दिया और हफ़सा वाली प्रति को कई नकलें कराकर सीरिया, मिस्र और फ़ारस आदि देशों में भेजी। वर्तमान क़ुरान यही है।
फिर यह उसी मेम्बर की सीढ़ी पर खड़े होकर वाज़ करते थे जिस पर मुहम्मद साहब। इस ख़लीफ़ा ने लाखों रुपये अपने सम्बन्धियों को और मुन्शी मखान को बाँट दिये थे, इससे मुसलमान इससे बहुत नाराज होगए। उनके छल-कपट के भी कुछ भेद खुले। इस पर बहुत से मुसलमान मदीने में आगए और उसे तोबा करने को कहा---पर उसने ऐसा नहीं किया। मिस्र के कुछ नागरिकों ने शिकायत की कि अब्दुल्ला को वहाँ का हाकिम न रख कर मुहम्मद बिन अबूबकर को बना दें। इस पर उसने ऐसा ही किया पर एक दूत चुपचाप अब्दुल्ला के पास भेज कर कहला दिया कि मुहम्मद को मार डालो। इससे क्रुद्ध होकर मिस्र वाले मदीने पहुँचे और कैफियत तलब की तथा गद्दी छोड़ने को कहा। उसने इन्कार किया। इस पर लोगों ने उसके घर में घुस कर उसे कत्ल कर दिया। मृत्यु के समय वह बयासी वर्ष का था।