पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/३४८

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. ३३६ होती। यदि, हुई भी तो असमय-ही क्ष दा से पीड़ित हो, संसार से चल बसती है। संक्षेप में यह कि इन उपद्रवों और अत्याचारों के कारण कृषक अपनी जन्म-भूमि छोड़कर, कुछ सुख मिलने की आशा से किसी पड़ौसी- राज्य में चले जाते हैं या सेना में जाकर किसी के पास नौकर हो जाते हैं। कारण कि, भूमि-सम्वन्धी कार्य बड़ी कठिनता से होता है, और कोई भी व्यक्ति इसके योग्य नहीं पाया जाता; जो अपनी इच्छा से उन नहरों और उन नालियों की मरम्मत करे-जो सिंचाई के लिये बनी हुई हैं। भूमि का बड़ा भाग सूखा और खाली पड़ा रहता है। बात भूमि तक ही नहीं है । बहुत-से घरों की भी ऐसी-ही दशा है। बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो नये मकान बनवाते या मकानों की मरम्मत करवाते हैं। एक ओर तो तो कृषक अपने मन में यह सोचते हैं कि क्या हम इस वास्ते परिश्रम कर कि कोई अत्याचारी आवे, और हमारा सब-कुछ छीन ले जावे, और हमारे निर्वाह को भी एक दाना न छोड़े। दूसरी ओर जागीरदार सूबेदार और तहसीलदार यह सोचते हैं कि, हम क्यों सूखी और उजाड़ भूमि की चिन्ता करें ? अपना रुपया और समय क्यों इसके उपयोगी बनाने में व्यय करें, न मालूम, किस वक्त वह हमारे हाथ से निकल जाय, और हमारे उद्योग तथा श्रम का फल न हमें मिले, न हमारे वंशजों को,-अतएव भूमि से जो मिल सके, ले लें, और जो न मिले, न सही। खेतिहर भूखों मरें या उजड़ जाएँ-हमें क्या ? जब हमको भूमि छोड़ देने की आज्ञा होगी, इसे ऊजड़ छोड़कर चल देंगे। हिन्दुस्तान का कला-कौशल या यहाँ की अत्यन्त सुन्दर कारीगरी- कभी के नष्ट हो लिये होते, यदि बादशाह से अमीरों के यहाँ बहुत-से कारी- गर नौकर न होते, जो स्वयं उनके घरों में और बादशाही कार्यालयों में बैठकर खुद करते तथा अपने शिष्यों और लड़कों को सिखलाया करते हैं। इनाम की आशा और कोड़ों का भय, उन्हें कलापूर्ण उन्नति के मार्ग में लगाये रहता है। यह भी कारण है कि कुछ धनी व्यापारी ऐसे भी हैं, जिनका बड़े-बड़े उमराओं से सम्बन्ध तथा व्यवहार है, अथवा जो कारीगरों को मामूली से कुछ अधिक मज़दूरी देकर काम लेते हैं। मैंने कुछ अधिक मजदूरी इसलिये कहा है कि, यह तो समझना ही चाहिये, अच्छी चीज कुछ