- ३३७ रहते हैं। उसी तरह कौड़ियाँ मलय-द्वीप से आती हैं, जो पैसे-धेले आदि के बदले में कम मूल्य पर मिलती हैं। अम्गर ईरान, मलय-द्वीप और मोज़ाम्बिक से आता है । गैंडे के सींग, हाथी-दाँत और गुलाम एथिओनिया से आते हैं । मुश्क और चीनी के बर्तन चीन से आते हैं । मोती, समुद्रों और टूटीकोरन से, जो लंका-टापू के निकट है, आता है;-तोभी इन चीजों के बदले मैं भारतवर्ष से चाँदी-सोना बाहर नहीं जाता। क्योंकि जो घ्यापारी ये चीजें लाते हैं-वे इसमें अधिक लाख समझते हैं। उनके बदले में वे यहाँ की वस्तुएँ ही अपने देशों को यहाँ से ले जाते हैं, सो यद्यपि हिन्दुस्तान मैं बाहरी देशों से प्राकृतिक या बनावटी चीज आती हैं, तथापि वे संसार-भर के, सोने या चाँदी के एक बड़े भाग के यहीं रह जाने में (जिनका अनेक द्वारों से यहाँ आगमन होता है) रुकावट नहीं डालतीं, और जो चाँदी-सोना एक बार यहाँ आता है, वह कठिनता से पुनः यहाँ से बाहर जाता है।" बनियर औरङ्गजेब के समय की गिरती हुई दशा का इस प्रकार वर्णन करता है- "जब कोई दरबारी या पदाधिकारी, चाहे वह कितना ही योग्य और बड़ा हो-आता है, तो उसकी सम्पत्ति बादशाही खजाने में चली जाती है। उससे बढ़कर यह बात है, कि हिन्दुस्तान की सब ज़मीन, बागों और मकानों को छोड़कर, जिनके बेचने-इत्यादि की अनुमति प्रायः सर्व- साधारण को दे दी जाती है, बादशाह की सम्पत्ति है । मैं अनुमान करता हूँ कि इन बातों से मैंने प्रमाणित किया कि यद्यपि सोने-चाँदी की खाने यहाँ नहीं हैं, तो भी चाँदी-सोना यहाँ अधिकता से है; और यह कि मुग़ल बाद- शाह, जो इस देश के बड़े भाग का स्वामी है उसकी आमदनी बहुत-ही अधिक है और वह बड़ा ही धनाड्य है।" शाहजहाँ, जो बहुत कम खर्च करनेवाला था, जो किसी बड़ी लड़ाई में फँसे तथा उलझे बिना चालीस वर्ष से अधिक समय तक राज्य करता रहा, कभी ६ करोड़ से अधिक रुपया इकट्ठा न कर सका। परन्तु इस धन में मैंने उन अगणित सोने-चाँदी की तरह-तरह की चीज़ों को, जिन पर बहुत अच्छे काम बने हुए हैं, तथा बड़े-बड़े मूल्य के मोतियों और भांति- भाँति के असंख्य रत्नों को सम्मिलित नही किया है। मुझे सन्देह है
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