३३६ वहाँ रेशम योरुप में आता है, टर्की की यह दशा है कि वहाँ के लोग उस सामान के बिना, जो यमन से आता है, रह ही नहीं सकते, और टर्की, यमन तथा ईरान को भारतवर्ष की वस्तुओं की आवश्यकता बनी रहती है । इस प्रकार मुखाबन्दर में, जो लाल समुद्र के किनारे पर स्थित है, और बसरे में, जो फ़ारस की खाड़ी के सिरे पर है, तथा अब्बास-बन्दर में, जो सुमात्रा टापू के पास है-इन देशों से रुपया आता है, और वहाँ से उन जहाज़ों पर लादकर जो अच्छी ऋतुओं में भारतवर्ष का माल लेकर इन प्रसिद्ध बन्दर- गाहों में आते हैं-भारतवर्ष में पहुँच जाता है। यह भी विदित हो, कि हिन्दुस्तानियों, डचों, अंगरेज़ों और पुर्तगीजों के सब जहाज, जो हर-साल हिन्दुस्तान का माल पेगू, तेनासरम, सिलोन, अचीन, मगसर, मलयद्वीप, मात्राम्बिक-आदि स्थानों में ले जाते हैं, वे भी उसके बदले में चाँदी-सोना ही लाते हैं, और यह भी उस रुपये की तरह-जो मुखाबन्दर, बसरा, और अब्बास-बन्दर से आता है, यहीं रह जाता है। जो सोना-चाँदी डच लोग जापान की खानों से निकालते हैं, उसमें भी थोड़ा-बहुन किसी-न- -न-किसी समय यहाँ आता रहता है, और जो रुपया सीधे मार्ग से फ्रान्स और पुर्त- गाल से आता है, वह भी कदाचित ही यहाँ से लौटकर बाहर जाता है। "यद्यपि मैं जानता हूं कि लोग यह कहेंगे, कि भारतवर्ष को ताँबा, लौंग, जायफल, दालचीनी-इत्यादि चीजों की आवश्यकता रहती है, जिनको डच, इंगलैण्ड, जापान, मलाका और सिलोन से लाते हैं, और सीसा भी (शीशा नहीं) बाहर से आता है, जिसमें से थोड़ा-सा इंगलैण्ड से अंगरेज़ भेजते हैं। इसके अतिरिक्त यद्यपि फ्रांस से बानात और अन्यान्य चीज़ आती हैं, और दूसरे देशों के घोड़ों की भी आवश्यकता भारत में रहा करती हैं, जो, प्रति-वर्ष २५ सहस्र से अधिक उज़बके देश (तुर्किस्तान) से और बहुत-से कन्धार होकर ईरान से और मुखा-बन्दर, बसरा और अब्बास-बन्दर होकर रगर्थओपिया (हब्श) अरब और फ़ारस से आते हैं। उसी प्रकार यद्यपि बहुत-से तर और सूखे मेवे समरकन्द, वनरख, बुखारा और ईरान से आते हैं, जैसे-सरदे, मेवे, नाशपाती, अंगूर, जो अधिकता से देहलौ में खर्च होता है, आर जाड़ों-भर बिकता रहता है, तथा बादाम, पिस्ते, पीपल, आलूखुबानी, किशमिश-इत्यादि, जो बारह महीने बिकते -
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