भेजा। उस वक्त वहाँ की गाड़ी पर खुशरू की दूसरी बेटी आरजम दुख़्त थी। मुसलमानी सेना ने पहुँचते ही लूट-मार मचा दी। रानी ने तीस हज़ार सवार रुस्तम इब्न फर्रु ख़जाद के साथ भेज दिये। पीछे से उसने मन-सहदेव के साथ तीन हज़ार सवार और तीस जङ्गी हाथी रुस्तम की मदद को भेजे। जब अबू अबीदा अपनी सेना सहित फ़रात नदी पर पुल बाँधकर पार हो रहा था, रुस्तम के धनुषधारियों ने वाण-वर्षा आरम्भ कर दी। इससे बहुत से मुसलमान मारे गये। अबू अबीदा घोड़े से गिर गया और हाथी से कुचला जाकर मर गया। इसके बाद सेना भाग निकली।
ख़लीफ़ा उमर ने यह सुनकर फिर एक बड़ी सेना मस्ना की अधीनता में भेजी। मस्ना ने ईरानी सेनापति को द्वन्द युद्ध में परास्त करके मार डाला और ईरानी सेना छिन्न-भिन्न हो गई। इसके बाद साद इब्ने अवि-विकास छ: हज़ार सवारों सहित मदीने से चला। और मार्ग में ही लूट और स्त्रियों के लालच से उसके पास तीस हज़ार सवार मस्ना तक पहुँचते-पहुँचते हो गये। इसी बीच में मस्ना मर गया और उसकी पत्नी को साद ने जो साठ वर्ष का था, अपनी स्त्री बना लिया। इसके बाद रुस्तम से युद्ध हुआ, मुसलमानों को और भी सहायता मिल गईं। भारी घमासान युद्ध हुआ और रुस्तम का सिर काट लिया गया। ईरानियों की पराजय हुई। उनकी तीस हज़ार सेना कट गई। इस युद्ध में मुसलमान भी सात हज़ार मारे गये। यह युद्ध क़ासदिया में हुआ था। इस विजय के उपलक्ष में फ़रात और दजला नदी के संगम पर बसरा नगर ख़लीफ़ा उमर की आज्ञा से बसाया गया, जो एक मुसलमान को गुलाम के तौर पर दिया गया था। एक दिन मज्दगुर्द की लड़की ने खिड़की से उसे देखकर कहा---"तुम पर लानत है कि अपने मुल्क, बादशाह और धर्म के लिए कुछ नहीं कर सकते।" फिरोज़ को शाहज़ादी की बात चुभ गई। वह मौका पाकर मसजिद में घुस गया। ख़लीफ़ा गर्दन झुकाये नमाज पढ़ रहा था। उसने उसकी गर्दन में छुरी घुसेड़ दी। बहुत से मुसलमान दौड़ पड़े। वह पाँच-सात को मार कर स्वयं भी मर गया। ख़लीफ़ा उन्हीं घावों से सातवें दिन मर गया। मृत्यु के समय उसकी आयु तिरसठ वर्ष की थी। उसके समय में सीरिया, मिस्र, पैलेस्टाइन और ईरान मुसलमानों के हाथ में आये। छत्तीस हज़ार नगर और किले छीने गये, चालीस हज़ार मन्दिर और गिरजे ढाये गये और कई लाख गै़र-मुस्लिम क़त्ल किये गये।