२८ हिन्दू-धर्म और समाज पर इस्लाम का प्रभाव अब हम इस बात पर विचार करते हैं कि जिस समय भारत में इस्लाम का प्रवेश हो रहा था, उस समय हिन्दू-समाज की क्या दशा थी। ७वीं शताब्दी के मध्य में सम्राट हर्षवर्धन की सत्ता समाप्त हुई, और शीघ्र-ही सारे भारत की शक्ति छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखर गई। पश्चिम से आगे बढ़कर राजपूतों ने उत्तर-पूर्व और मध्य-भारत में छोटी- छोटी अनेक रियासतें पैदा करलीं। कुछ मिश्रित जातियों ने भी अपने को राजपूत कहना प्रारम्भ कर दिया। इस प्रकार मुसलमानों के आक्रमण से प्रथम पञ्जाब से दक्षिण और बंगाल से अरब सागर तक लगभग समस्त प्रदेशों पर राजपूतों का अधिकार था। ये तमाम छोटी-छोटी रियासतें आपस में लड़ती-झगड़ती रहती थीं। परस्पर कोई मेल न था। न इनके ऊपर कोई एक बड़ी सत्ता थी। मगध, पाटलिपुत्र आदि के साम्राज्य-चिह्न खण्डहर होगये थे। वैशाली, कुशीनगर, कपिलवस्तु, आवस्ति आदि प्रसिद्ध बौद्ध-नगर उजड़ गये थे। राजनीति और धार्मिक-जीवन के साथ उस काल के हिन्दुओं का धार्मिक-जीवन भी छिन्न-भिन्न होगया था। यही कारण था, कि बुद्ध की मृत्यु के लगभग ढाई-सौ वर्ष के अन्दर बौद्ध-धर्म ने उस जीर्ण- शीर्ण हिन्दू-धर्म को निकाल कर बाहर कर दिया, और यद्यपि बौद्धों और हिन्दुओं में बड़े भारी युद्ध और विरोध हुए, पर दोनों धर्मों की दोनों धर्मों पर छाप पड़ी थी। हिन्दू-कर्म-काण्ड और बौद्ध-धर्म में आदि बौद्धों का-सा तत्व हिन्दुओं में घुसकर बैठ गया था । उत्तरी भारत में महा- यान सम्प्रदाय स्थापित हो चुका था, और बुद्ध के सिवा अनेक बोधिस्वत्वों ३१८ । .
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