३१४ यह श्लोक पुण्यः-हिन्दू स्नान करती बार पढ़ा करते हैं । इस श्लोक में मानों समस्त देश लिपटा हुआ है। एक और महत्वपूर्ण श्लोक मिलता है, जिसमें देश को सात कुलपर्वतों का देश माना गया है- महेन्द्रो मलयः सह्म शुक्ति मानक्ष पर्वतः । बिन्ध्यश्च पारिपत्रश्च सप्तेते कुल पर्वताः ।। एक श्लोक में सर्व भारतवर्ष के तीर्थों के जिक्र हैं:- अयोध्या, मथुरा, माया काशी, काञ्ची अवन्तिका । पुरी, द्वारावती चैव, सत्पता मोक्षदायिकाः ॥" यह भारत के सात प्रधान नगरों की सूची है। इन स्थानों की यात्रा करना हिन्दुओं का धर्म कहा गया है, और इनकी यात्रा करना मानो समस्त भारत का भ्रमण करना है। श्री शंकराचार्य के चारों मठ भारत के चारों कोनों पर प्रतिष्ठित हैं। यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि इससे कैसी सार्वदेशिक एकता उत्पन्न होती है । पुराणों के और श्लोक सुनिये- सौराष्ट्र सोमनाथश्च श्री शैले मल्लिकार्जुनम् । उज्जयिन्यां महाकालं ओंकारं अमरेश्वरे ॥ केदारं हिनवत्यृष्ठे डाकिन्यां भीम शंकरम् । का वाराणस्याञ्च विश्वेश त्र्यम्बक गौतमी तटे ॥ वैद्यनाथं चिताभूमो नाकेश द्वारिका बने । सेतु-बन्धे च रामेश छुश्मे शञ्च शिवालये ॥ एतानि ज्योति लिङ्गानि सायं-प्रातः पशेतरः । सप्त जन्म कृतं पापं स्मरणे त विनश्यति ॥ इन श्लोकों से सहसा मन में यह बात पैदा होती है, कि आजकल जगह-जगह के मुहानों पर मोर्चे बांधकर जैसे क़िले बनाये गये, हैं उसी तरह प्राचीन विद्वानों ने इस तरह मन्दिर और तीर्थों की प्रतिष्ठा करके विस्तृत देश का महान् एकीकरण किया था। प्राचीन साहित्य में देश-प्रेम और देश- भक्ति के कैसे ज्वलन्त भाव हैं । सुनिये ।
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