३०३ सिपाही नंगी तलवारें लिये फिर रहे थे। परन्तु अलीहुसैन ने मंजूर न किया । तब नवाब के दूर के रिश्तेदार आजमुद्दौला से अंगरेजों ने बातचीत की। उसने सन्धि की शर्ते स्वीकार कर लीं। तब इसे मसनद पर बैठा दिया गया। इस सन्धि के अनुसार तमाम कर्नाटक-प्रान्त कम्पनी के हाथ आगया, और आजमुद्दौला केवल राजधानी अरकार और चिपोक के महलों का स्वामी रह गया। नवाब को चिपोक के महल में रखा गया, और उसी में शाहजादा अलीहुसेन और उसकी विधवा माँ को कैद कर दिया गया। कुछ दिन बाद वह वहीं मर गया। सन्देह किया जाता है कि उसे जहर दिया नाया।
२४ सूरत की नवाबी मुग़ल-साम्राज्य में सूरत एक सम्पन्न बन्दरगाह और सूबा था। बहुत दिन तक वहाँ बादशाह का सूबेदार रहता था। जब साम्राज्य की शक्ति ढीली पड़ी, तब वहाँ का हाकिम स्वतन्त्र नवाब बन बैठा। पीछे जब योरोप की जातियों ने भारत में पैर फैलाये, और अंगरेज़ों की शक्ति बढ़ने लगी, तब सूरत के नवाब से भी अंगरेजों ने सन्धि कर ली। धीरे-धीरे नवाब अंगरेज़ों के हाथ की कठपुतली हो गया । चार नवाबों के जमाने में यही होता रहा। वेलेजली ने अपनी नीति के आधार पर नवाब को भी सेना-भंग करने और कम्पनी की सेना रखने की सलाह दी। नवाब ने बहुत नाँ-नूं की, मगर अन्त में एक लाख रुपया वार्षिक और ३० हजार रुपये सालाना की और रियायतें करनी ही पड़ों । इसो समय नवाब मर गया। इसके बाद इसका चचा नसीरुद्दीन गद्दी पर बैठा। इसने शीघ्र ही सब दीवानी और 'फ़ौजदारी अधिकार अंगरेज़ों को दे दिये, और स्वयं बे-मुल्क नवाब बन बैठा, जो दिन बाद समाप्त होगये।