पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/३११

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३०२ अब अंगरेजों की कृपा से मुहम्मदअली कर्नाटक का नवाब बना । इसके बदले में उसने १६ लाख की आय का इलाक़ा अंगरेजों को दिया । प्रारम्भ में मुहम्मदअली की अंगरेजों में बड़ी प्रतिष्ठा थी। पर, वह शीघ्र ही बंगाल के नवाबों की भाँति दुरदुराया जाने लगा। उससे नित नई माँगें पूरी कराई जाती थीं, और नवाब को प्रत्येक नये गवर्नर को लगभग डेढ़ लाख रुपये नजर करने पड़ने थे। अन्त में इस पर इतने खर्चे बढ़ गये, कि वह तङ्ग हो गया, और अंगरेज़ों से जान बचाने का उपाय सोचने लगा। इस समय अंगरेज़ व्यापारियों के कर्जे से वह बेतरह दबा हुआ था। लार्ड कॉर्नवालिस ने नवाब से एक सन्धि की, जिसके कारण नवाब की तमाम सेना का प्रबन्ध अंगरेजों के हाथ में आ गया। इसके खर्च के लिये नवाब से कुछ जिले रहन रखा लिये गये । इनकी आमदनी ३० लाख रुपया सालाना थी। सन् १७६५ में मुहम्मदअली की मृत्यु हुई, और उसका बेटा नवाब उमदतुलउमरा गद्दी पर बैठा। इस पर गवर्नर ने जोर दिया कि रहन रखे जिले और कुछ क़िले वह कम्पनी को दे दे। पर उसने साफ़ इनकार कर दिया । परन्तु इसी बीच में अंगरेजों ने प्रतापी टीपू को हरा डाला था, और रंगपट्टन का अटूट खजाना उनके हाथ लगा था। उसमें गवर्नर को कुछ ऐसे प्रमाण भी मिले थे, कि जिनमें कर्नाटक नवाब का टीपू के साथ षड्यन्त्र पाया जाता था। परन्तु नवाब के जीते-जी यह बात यों-ही चलती रही। ज्योंही, नवाब मृत्यु-शय्या पर पड़ा, कम्पनी को सेना ने महल को घेर लिया, और यह कारण बताया कि नवाब की मृत्यु पर बदअमनी का भय है। नवाब बहुत गिड़गिड़ाया, पर अंगरेजों ने उसे हर समय घेरे रखा, और बराबर अपनी मित्रता का विश्वास दिलाते रहे । उस समय नवाब का बेटा शाहजादा अलीहुसैन उसी महल में था। ज्योंही नवाब के प्राण निकले कि शहजादे को जबरदस्ती महल से बाहर लेजाकर अंगरेजों ने कहा-“चू कि तुम्हारे दादा और बाप ने अंगरेजों के खिलाफ़ गुप्त पत्र-व्यवहार किया है, इसलिए गवर्नर-जनरल का यह फैसला है, कि तुम बजाय अपने बाप की गद्दी पर बैठने के मामूली रिआया की भाँति जिन्दगी बिताओ, और इस सन्धि-पत्र पर दस्तखत कर दो।" जहाँ यह बातें हो रही थीं-वहाँ अंगरेजी