तबाह हो गया। सेनापति अबू अबीदा, इसके बड़े-बड़े योद्धा तथा पचीस हज़ार सैनिक मारे गये।
ख़लीद ने एक कवि को अपनी प्रशंसा करने के उपलक्ष में तीस हज़ार रुपए इनाम दे डाले थे। इस कसूर में उसे ख़लीफ़ा ने उसी की पगड़ी से बाँधकर अपने सामने बुलवाया और उसे पद-भ्रष्ट करके अपने घर चले जाने का हुक्म दिया। मरते वक्त उसके घर में सिर्फ एक घोड़ा और कुछ शस्त्र निकले थे।
इस प्रकार मुसलमानों ने निर्भय होकर सारे एशिया-माइनर को रौंद डाला। वह सीरिया देश, जिसे सीज़र के समतुल्य महान् पाम्पी ने सात सौ वर्ष पहले रोमन राज्य में मिलाया था; वह सीरिया, जो ईसाइयों का परम पवित्र स्थान था और जहाँ से सम्राट हरक्यूलस ने एक बार फ़ारिस के आक्रमणकारी को परास्त किया था, मुसलमानों के हाथ आ गया। सम्राट हरक्यूलस जब कुस्तुन्तुनिया को भाग रहा था तब जहाज पर बैठ उसने बड़े कष्ट से अदृष्ट होते हुए पहाड़ों पर उदास दृष्टि डाली और कहा---"सीरिया, मेरा प्रणाम ले, और यह प्रणाम सदैव के लिए है।"
इसके बाद टिपोली, टायर और कैसरिया ले लिये गये। लेवेतस पहाड़ की लकड़ी और फुनेशिया के मल्लाहों से एक जबर्दस्त बेड़ा तैयार किया गया, जिसने रोम के प्रतापी बेड़े को हेलेस पाण्ट में भगा दिया। साइप्रस, शेडरू और साईक्लेडीज़ तबाह कर डाले गये। और वह पीतल की बड़ी मूर्ति, जो संसार के सात आश्चर्यों में गिनी जाती थी, एक यहूदी को बेच दी गई, जिसने उसके पीतल नौ सौ ऊँटों पर लादा था। अब ख़लीफ़ा की सेनाएँ कृष्णा-समुद्र तक बढ़ गयीं और कुस्तुन्तुनिया के मुकाबले में जा डटीं।
इन विजयों ने मुसलमानों के राज्य को सिकन्दर और रोम के साम्राज्य से भी बड़ा बना दिया। टेसीकोन के घेरे जाने पर ख़जाना सिलहख़ाना और बहुत सा लूट का माल मुसलमानों के हाथ लगा और यही कारण है कि निहाबन्द की विजय को वे लोग सब विजयों की विजय कहते हैं। एक ओर तो वे कैस्पियन सागर तक बढ़े और दूसरी ओर हिंगारिस नदी के किनारे-किनारे परसी पोलीस तक दक्षिण की ओर फैले। केडीसिया की लड़ाई में फ़ारिस के भाग्य का भी निबटारा हो गया। फ़ारिस-नरेश उस नगर के