२८० करली गई। वीरवर मोहनलाल भी ज़ख्मी ही कैद किया गया, और नीच दुर्लभराय ने उसे मार डाला। फिर भी गधे को सिंहासन पर बैठने का साहस न हुआ। वह क्लाइव का इन्तजार करने लगा। पर क्लाइव का कई दिनों तक नगर में आने का साहस न हुआ। २६ जून को २०० गोरे ५०० काले सिपाहियों के साथ क्लाइव ने राजधानी में प्रवेश किया। क्ला- इव लिखता है - "शाही सड़क पर उस दिन इतने आदमी जमा थे कि यदि वे अंग- रेजों के विरोध का संकल्प करते तो, केवल लाठी, सोटों, पत्थरों ही से सब काम हो जाता।" अन्त में राजमहल में आकर क्लाइव ने मीरजाफ़र को नवाब बना- कर सबसे पहले कम्पनी के प्रतिनिधि-स्वरूप नज़र पेश करके बंगाल और उड़ीसे का नवाब कहकर अभिवादन किया । इसके बाद बाँट-चूट, जो होना था कर लिया गया। शाहपुर के पास सिराजुद्दौला को मार्ग में मीरक़ासिम ने पकड़ लिया। उसकी असहाय बेगम लुत्फुन्निसा के गहने लूट लिये और बाँधकर राजधानी को लाया गया। मुर्शिदाबाद में हलचल मच गई। बग़ावत के डर से नये नवाब ने अपने पुत्र मीरन के हाथ से उसी रात को सिराज को मरवा डाला। उस समय का भीषण वर्णन एक इतिहासकार ने इस प्रकार किया है- "यह काम मुहम्मद के सुपुर्द हुआ। यह नमकहराम भी जाफ़र और मीरन की तरह सिराज के टुकड़ों पर पला था। मुहम्मदखाँ हाथ में एक बहुत तेज़ तलवार ले, सिराज की कोठरी में जा दाखिल हुआ। उसे इस तरह सामने देख, सिराज ने घबड़ाकर कहा–'क्या तुम मुझे मारने आये 1 1 उत्तर मिला-'हाँ' "अन्तिम समय निकट आया समझ, सिराज ने ईश्वर-प्रार्थना के लिये हाथ-पैरों की जंजीर खोलने की प्रार्थना की। पर वह नामंजूर हुई । डर के मारे उसका गला चिपक गया था। उसने पानी माँगा, पर पानी भी न दिया गया। लाचार हो, जमीन पर माथा रगड़कर सिराज बार-बार ईश्वर का नाम लेकर अपने अपराधों की क्षमा माँगने लगा। इसके बाद
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