पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२८५

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२७६ अपने ही हाथों से आग लगाकर भाग गई। क्लाइव ने विजय-गर्वित की तरह क़िले पर अधिकार किया। नगर-निवासी प्राण लेकर भागे-अंगरेजों ने उनका सर्वस्व लूट लिया। केवल चावल ही इतना मिल गया था जो १० हजार सिपाहियों को १ वर्ष तक के लिये काफ़ी था। फिर भी क्लाइव विश्वास और अविश्वास के बीच में झकझोरे ले रहा था। हाउस ऑफ़ कॉमन्स में इस समय की बात का जिक्र करती बार उसने कहा था- "मैं बड़ा ही भयभीत था। यदि कहीं हार जाता तो हार का समा- चार ले जाने के लिये भी एक आदमी को जिन्दा वापस जाने का मौका नहीं मिलता।" निदान, उसने नवाब के विरोधी वर्तमान महाराज को लिख भेजा-"आपके सवार चाहे १ हजार से अधिक न हों, तो भी आप फ़ौरन् आ मिलिये।" २२ जून को गंगा पार करके मीरजाफ़र के बनाये संकेतों पर वह आगे बढ़ा, और रात्रि के दो बजे पलासी के लक्खीबाग़ में: मोर्चे जमाये। नवाब का पड़ाव उसके नजदीक ही तेजनगरवाले विस्तृत मैदान में था। परन्तु उसकी सेना का प्रत्येक सिपाही, मानों उसका सिपाही न था। वह रात-भर अपने खेमे में चिन्तित बैठा रहा। रात बीती। प्रसिद्ध प्रभात आया। अग्रजों ने बाग़ के उत्तर को ओर एक खुली जगह में व्यूह-रचना की। नवाब की सेना मीरजाफ़र, दुर्लभराय, यारलतीफ़खाँ-इन तीन नमकहरामों की अध्यक्षता में अर्द्धचन्द्राकार व्यूह रचना करके बाग़ को घेरने के लिये बढ़ी। अंगरेज़ क्षण-भर को घबराये । क्लाइव ने सोचा कि यदि यह चन्द्र- व्यूह तोपों में आग लगादे, तो सर्वनाश है। पर जब उसने उस सेना के नायकों को देखा तो धैर्य हुआ। क्लाइव की गोरी पल्टन चार दलों में विभक्त हुई, जिसके नायक क्लिप्याट्रिक, ग्राण्टक्रट और कप्तान गप थे। बीच में गोरे, दाएं-बाएं काले सिपाही थे। नवाब की सेना के एक पार्श्व में फ्रेंच-सेनापति सिनफ्र, एक में मोहनलाल और उनके बीच में मीरमदन । फ़ौजकशी का भार मीरमदन ने लिया । अंगरेज़ों ने देखा-नवाब का व्यूह दुर्भेद्य है। ८ बजे मीरमदन ने तोपों में आग लगाई । शीघ्र ही तोपों का दोनों