२७० - - भी नवाब ने अपना कर्तव्य-पालन किया। जो फ्रान्सीसी भागकर किसी तरह प्राण बचा, मुर्शिदाबाद पहुँच गये, उन्हें अन्न, वस्त्र, धन की सहायता दे, कासिमबाजार में स्थान दिया गया। इस घृणित विजय से गर्वित अंगरेज़ों ने जब सुना, कि नवाब ने भागे हुए फ्रांसीसियों को सहायता दी है, तो वे बड़े बिगड़े । वे इस बात को भूल गये कि नवाब देश का राजा है। शरणागतों और खासकर प्रजा की रक्षा करना उसका धर्म है। पहले उन्होंने लल्लो-चप्पो का पत्र लिखकर नवाब से फ्रान्सीसियों को अंगरेजों के समर्पण करने को लिखा। पीछे जब नवाब ने दृढ़ता न छोड़ी, तो गर्जन-तर्जन से युद्ध की धमकी दी। नवाब ने कुछ जवाब नहीं दिया। अब वह चुपचाप, सावधान हो कर अंगरेजों के इरादों का पता लगाने लगा। इधर अंगरेज़ बाहर से तो फ्रान्सीसियों के नाश के लिये नवाब से कभी लल्लो-चप्पो और कभी घुड़क- फुड़क से काम ले रहे थे, और उधर नवाब को सिंहासन से उतारने की तैयारी कर रहे थे। विलायत में, हाउस ऑफ कॉमन्स में गवाही देते हुए क्लाइव ने साफ़- साफ़ यह कहा था- "चन्दननगर पर अधिकार होते ही मैंने सबको समझा दिया था कि बस, इतना करके बैठे रहने से काम न चलेगा-कुछ दूर और आगे बढ़ कर नवाब को गद्दी से उतारना पड़ेगा। इस मेरे मन्तव्य से सब सहमत भी हो गये थे।" अब अंगरेज़ों ने गहरी चाल चली ; घूस की मदद से नवाब के उम- रावों द्वारा यह बात नवाब से कहलाई कि फ्रांसीसियों के क़ासिमबाजार में रहने से शान्ति-भङ्ग होने की आशंका है, आप इन्हें पटने भेज दें-वहाँ यह सुरक्षित रहेंगे। नवाब को इस बात में कुछ चाल न सूझी। उसने फ्रेंच सेनापति लॉस को पटना जाने का हुक्म दे दिया। लॉस एक बुद्धिमान अफ़- सर था। उसने कुछ दिन दरबार में रहकर सब व्यवस्था भली-भाँति जाँच ली थी। उसने नवाब से कहा- "आपके वजीर और फौजी सरदार सब अंगरेजों से मिले हैं, और आपको गद्दी से उतारने की कोशिश कर रहे हैं। केवल फ्रान्सीसियों के भय 1
पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२७९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।