पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२७२

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२६३ "मैं कह चुका हूँ कि कम्पनी के प्रधान कर्मचारी ड्रेक ने मेरी आज्ञा के विपरीत आचरण करके मेरी शासन-शक्ति का उल्लंघन किया तथा दरबार को निकासी का पावना अदा न कर, मेरी भागी प्रजा को आश्रय दिया । मेरे बार-बार रोकने पर भी उन्होंने इसकी परवा नहीं की। इसी का मैंने उन्हें दण्ड दिया. अतएव राज्य और राज्य के निवासियों के कल्याण के लिये मैं तुम्हें सूचित करता हूँ कि किसी व्यक्ति को अध्यक्ष नियुक्त करो, तो पूर्व-प्रचलित नियम के अनुसार ही तुमको वाणिज्य के अधिकार प्राप्त होंगे। यदि अंगरेज़ों का व्यवहार व्यापारियों जैसा रहेगा, तो इस सम्बन्ध में वे निश्चिन्त रहें कि मैं उनकी रक्षा करूंगा, और वे मेरे कृपा-पात्र रहेंगे।" नवाब के इस पत्र का अंग्रजों ने इस प्रकार जवाब भेजा-1 "आपने इस झगड़े की जड़ जो ड्रक साहब का उद्दण्ड व्यवहार लिखा है-सो आपको जानना चाहिये कि शासक और राजकुमार लोग न आँख से देखते हैं, न कानों से सुनते हैं। प्रायः असत्य खबर पाकर-ही काम कर बैठते हैं।..."क्या एक आदमी के अपराध में सब अंगरेज़ों को निकालना उचित था !...."वे लोग शाही फ़रमान पर भरोसा रखकर उस रक्त-पात और उन अत्याचारों के बजाय-जो दुर्भाग्य से उन्हें सहने पड़े-सदैव अपने जान-माल को सुरक्षित रखने की आशा रखते थे । क्या यह काम एक शाह- जादे की प्रतिष्ठा के योग्य था ?......... "इसलिये आप यदि बड़े शाह- ज़ादे की तरह न्यायी और यशस्वी बना चाहते हैं, तो कम्पनी के साथ जो आपने बुरा व्यवहार किया है। उसके लिये उन बुरे सलाहकारों को, जिन्होंने आपको बहकाया या-दण्ड देकर कम्पनी को सन्तुष्ट कीजिये, और उन लोगों को, जिनका माल छीना गया है-राज़ी कीजिये, जिससे हमारी तल- वारों की वह धार म्यान में रहे, जो शीघ्र ही आपकी प्रजा के सिरों पर गिरने के लिये तैयार है। यदि आपको मि० ड्रक के विरुद्ध कोई शिकायत है, तो आपको उचित है कि आप उसे कम्पनी को लिख भेजिये, क्योंकि नौकर को दण्ड देने का अधिकार स्वामी को होता है । यद्यपि मैं भी आपकी तरह सिपाही हूँ, तथापि यह पसन्द करता हूँ कि यह आप स्वयं अपनी इच्छा से सब काम करदें। यह कुछ अच्छा नहीं होगा कि मैं आपकी निरपराध प्रजा को पीड़ित करके आपको यह काम करने पर बाध्य करू.........।" 1