- २६२ साथ ही वाट्सन साहब का एक पत्र भी आया, जिसमें बड़ी हेकड़ी के साथ नवाब को अंगरेज़ों के प्रति निर्दय-व्यवहार की मलामत की गई थी, और उन्हें फिर बसने देने और हर्जाना देने के सम्बन्ध में वैसी-ही हेकड़ी के शब्दों में बातें लिखी थीं। इनके साथ-ही क्लाइव ने भी बड़ा अभिमानपूर्ण पत्र नवाब को लिखा, जिसमें लिखा था - "मेरी दक्षिण की विजयों की खबर आपने सुनी ही होगी-मैं अंगरेज़ों के प्रति किये गये आपके व्यवहार का दण्ड देने आया 1 कलकत्त के व्यापारी भी लड़ाई को दबाना चाहते थे, क्योंकि नवाब ने उन्हें अधिकार देना स्वीकार भी कर लिया था। परन्तु क्लाइव और वाट्सन के तो इरादे ही और थे। वे शीघ्र-ही सज्जित होकर कलकत्त की ओर बढ़ने लगे। गंगा किनारे बजबज नामक एक छोटा क़िला था। अंगरेज़ों ने उस पर धावा कर दिया। मानिकचन्द ढोंग बनाने को कुछ देर झूठ-मूठ लड़ा, पर शीघ्र ही भागकर मुर्शिदाबाद जा पहुँचा । यही हाल कलकत्त के क़िलेवालों का भी हुआ। सूने किले में क्लाइव ने धूमधाम से प्रवेश किया। इस बढ़िया विजय पर क्लाइव और वाट्सन में इस बात पर खूब ही झगड़ा हुआ कि क़िले पर कौन अधिकार जमाये ? अन्त में क्लाइव ही उसका विजेता माना गया। अब ड्रक साहब पुनः बड़े गौरव से कलकत्त आकर बिना किसी लज्जा के गवर्नर बन गये। क़िले के भीतर की सब वस्तुएँ ज्यों-की त्यों थी । नवाब ने उसे लूटा न था; न किसी ने चुराया। क़िला फ़तह होगया, मगर लूट तो हुई ही नहीं। क्लाइव को बड़ी आतुरता हुई। अन्त में हुगली लूटने का निश्चय हुआ। वह पुरानी व्यापार की जगह थी । वाणिज्य भी वहाँ खूब था । मेजर किलप्याट्रिक बहुत दिन से बेकार बैठे थे। उन्हें ही यह कीर्ति-सम्पादन का काम सौंपा गया। पैदल, गोलन्दाज़, सभी अंग्रेज़ हुगली पर टूट पड़े । नगर को लूट-पाटकर आग लगा दी गई। हुगली को लूटकर जब अंगरेज़ किले में लौट आये, नवाब का पत्न मिला- -
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