२५६ - कृपादृष्टि उन पर हुई । उनके लिये बाज़ार खोल दिया गया, और तरह- तरह की नम्र विनतियों से नवाब के दरबार में व्यापार करने के आज्ञा- पत्र के साथ प्रार्थना-पत्र जाने लगे, और उनके सफल होने की भी कुछ-कुछ आशा होने लगी। परन्तु इसी बीच में क़ासिम-बाज़ार से हेस्टिग्स ने लिखा, -"मुर्शिदाबाद में बड़ी गड़बड़ी मची है। दिल्ली से शौक़तजंग ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा की नवाबी की सनद प्राप्त करली है, और प्रायः सभी जमींदार उसके पक्ष में तलवार उठायेंगे। अब सिराजुद्दौला का गर्व चूर्ण हुआ चाहता है।" इस खबर के मिलते ही अंगरेजों के इरादे ही बदल गये। अब वे शौक़तजंग से मेल बढ़ाने की व्यवस्था करने लगे । पर नवाब को इसकी कुछ खबर न थी। उसके पास बराबर अनुनय-विनय के पत्र जा रहे थे। जो उसे इस राज-विद्रोह की कुछ भी खबर लग जाय, तो शायद पालता बन्दर ही अंगरेज़ों का समाधि क्षेत्र बन जाय ! इधर मद्रासवाले अंगरेज़ों ने कोई दो महीने पीछे कलकत्ते की रक्षा का निश्चय बड़े वाद-विवाद के बाद किया, और कर्नल क्लाइव तथा एड- मिरल वाट्सन के साथ और स्थल की सेनायें भेज दी गई। ये लोग ५ सैनिक जहाजों के साथ १३ वीं अक्तूबर को चले । ५ जहाजों पर असबाब था। ६०० गोरे और १५०० काले सिपाही थे। दिल्ली का सिंहासन धीरे-धीरे काल के काले हाथों से रंग रहा था। पर अब भी उसके नाम के साथ चमत्कार था। नवाब ने सुना कि शाह- जादा शौक़तजंग अंग्रेजों की सहायतार्थ आ रहा है तो उसने उसके आने से पूर्व ही शौकत-जंग को परास्त करने का निश्चय किया । उसे यह मालूम था कि शौक़तजंग बिलकुल मूर्ख, घमण्डी और दुराचारी आदमी है, और उसके साथी-स्वार्थी और खुशामदी। उसे हराना सरल है । परन्तु वह भी अलीवर्दीखाँ खानदान का था । अतएव उसने शौक़तजंग को एक चिट्ठी लिखकर समझाया। उसका जवाब जो मिला वह यह था- "हम बादशाह की सनद पाकर बंगाल, बिहार और उड़ीसा के नवाब हुए हैं। तुम हमारे परम आत्मीय हो। इसलिए हम तुम्हारे प्राण लेना नहीं चाहते। तुम पूर्वी बंगाल के किसी निर्जन स्थान में भाग कर
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