पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२६५

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२५६ + फुट की व्यासवाली कोठरी में १४६ आदमी, यदि वे बोरों की तरह भी लादे जाएँ तो नहीं आ सकते। इसका जिक्र न तो किसी मुसलमान लेखक ने किया है, न कम्पनी के कागजों में ही कहीं इसका ज़िक है, उस समय मद्रासी अंगरेज़ों और नवाब में जो पीछे हर्जाने की बात चली, उसमें भी काल-कोठरी का जिक्र नहीं है। क्लाइव ने जिस तेजी-तुर्सी के साथ नवाब से पत्र-व्यवहार किया था, उसमें भी काल-कोठरी के अत्याचार का जिक्र नहीं है। यहाँ तक कि सिराजुद्दौला और अंगरेजों की जो पीछे सन्धि- स्थापना हुई थी, उस में भी इसका कुछ जिक्र नहीं है। क्लाइव ने नवाब को पद-च्युत करने पर कोर्ट आफ़ डाइरेक्टर्स को, नवाब के अत्याचारों से परिपूर्ण जो चिट्ठी लिखी थी, उसमें भी काल-कोठरी का ज़िक्र नहीं है । अंगरेज़ों ने मीरज़ाफ़र को अपने हरजाने का पैसा-पैसा भरपाई का हिसाब लिखा था, पर उसमें भी काल-कोठरी का जिक्र नहीं है। अंगरेजों ने लिखा है कि क़िले पर आक्रमण करने से प्रथम क़िले में ६०० आदमी थे, जिनमें ६० यूरोपियन थे। इनमें से बहुतेरे ड्रक के साथ भाग गये, २५ मर गये, ७० घायल पड़े थे। तिस पर भी १६४ आदमी कहाँ से बन्द किये गये ! यह कहानी वास्तव में २८ फरवरी को हॉलवेल ने अपने एक दोस्त को गढ़कर सुनाई थी। इग्लैंड में भारतीय अंगरेज़ों के अत्याचार और नवाब की हत्या का समाचार पाकर रौरा मचा, तब यह सर्व-साधारण पर प्रकट की गई और बड़ी सफलता से इसका प्रभाव पड़ा। हॉलवेल साहब इसका एक स्मृति-स्तम्भ भी बनवा गये थे, पर पीछे वह अंगरेजों ने ही गिरा दिया। आज इसी कल्पित काल-कोठरी की यातना प्रत्येक जेल में प्रत्येक कैदी को भुगतनी पड़ती है। ये हॉलवेल साहब वास्तव में पहले डॉक्टर थे, और अंगरेजों की कम्पनी से इन्हें ६००) रुपये तन्ख्वाह मिलती थी। नज़र-भेंट में भी खासी आमदनी होती थी। पर ये काले लोगों के प्रति बड़े ही निर्दयी थे । इसी से नवाब ने मुचलका लिखाया था। जब कलकत्ता फ़तह हुआ, तो हॉलवेल साहब का सर्वनाश हुआ। साथ ही वे बन्दी करके मुशिदाबाद लाये गये। पर पलासी-युद्ध में मीरजाफ़र से घूस में 1 लाख रुपया इन्हें मिला । तब