पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२६१

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, २५२ कठिनता से जगन्नाथ को सिपाहियों ने उठाकर कैद किया-उसके प्राण नहीं निकले थे। पर अंगरेज़ों को भीतर घुसने का समय न मिला-धाय- धाँय करके वह विशाल महल जलने लगा। नवाब हुगली तक आ पहुँचा । गङ्गा की धारा को चीरती हुई सैकड़ों सुसज्जित नावें हुगली में जमा होने लगीं। डच और फ्रांसीसी सौदागरों ने नवाब से निवेदन किया कि 'यूरोप में अंगरेज़ों से सन्धि होने के कारण वे इस लड़ाई में शरीक़ नहीं हो सकते हैं।' नवाब ने उनकी इस नीति-युक्त बात को स्वीकार कर, उनसे गोला-बारूद की सहायता ले, उन्हें विदा किया। नवाब के कलकत्त पहुँचने की खबर बिजली की तरह फैल गई। अंगरेज़-लोग किले में घुसकर फाटक बन्द कर, बैठ रहे। जिसको जिधर राह सूझी भाग निकला। रास्तों, घाटों, जंगलों और नदियों के किनारों में दल-के दल स्त्री-पुरुष कुहराम मचाते भागने लगे। पर सबसे अधिक दुर्दशा उन अभागों की हुई थी, जिन्होंने काले चमड़े पर टोप पहनकर अपने धर्म को तिलांजलि दी थी। इनसे देशवासी भी घृणा करते थे, और अंगरेज़ भी। निदान, इन्हें कहीं आसरा न था। ये सब स्त्री, बच्चे, बूढ़े इकट्ठ होकर क़िले के द्वार पर सिर पीटने लगे। अन्त में इनके आर्तनाद से निरुपाय होकर अंगरेजों ने इन्हें भी क़िले में आश्रय दिया। नवाब की वृहदाकार तोपें भीषण गर्जन द्वारा जब अपना परिचय देने लगीं, तो अंगरेज़ों के छक्के छूट गये। उन्होंने भी मायाजाल फैलाने घूस देने और नज़र-भेंट देने की बहुत चेष्टा की, पर नवाब ने इरादा नहीं बदला । उसका यही हुक्म था, कि क़िला अवश्य गिरा दिया जायेगा। यह किला पूर्व की ओर २१० गज़, दक्षिण की ओर १३० गज़, और उत्तर की ओर सिर्फ १०० गज था। मजबूत चहारदीवारी के चारों कोनों पर चार बुर्ज थे। प्रत्येक पर १० तोपें लगी थीं। पूर्व की ओर विशाल फाटक पर ५ वृहदाकार तोपें मुह फैला रही थीं। इसके पश्चिम की ओर गङ्गा की प्रबल धारा समुद्र की ओर बह रही थी। पूरब की ओर फाटक के पास से गुजरती हुई लाल बाजार की सीधी और सुन्दर सड़क बलिया- घाट तक चली गई थी। इस किले पर पूर्व, उत्तर और दक्षिण की ओर तोपों के तीन मोर्चे और भी थे। कलकत्त के तीन ओर मराठा-खाई थी। ,