२५१ - जिस समय नवाब की सेना कलकत्त की तरफ़ आरही थी, तो अमी- चन्द के मित्र राजा रामसिंह ने गुप्त रूप से एक पत्र लिखकर अमीचन्द को चेता दिया था कि 'तुम सुरक्षित स्थान में चले जाओ तो अच्छा है।' दैव- योग से यह पत्र अंगरेजों के हाथ लग गया। बस, इसी अपराध पर धीर-वीर अंगरेज़ों ने अमीचन्द को पकड़कर कैदखाने में ठूस देने का हुक्म फ़ौज को दे दिया । अमीचन्द को इस विपत्ति की कुछ खबर न थी। एकाएक फ़ौज ने उसे गिरफ्तार कर लिया, और अभियुक्तों की तरह बाँधकर ले चली। कलकत्त के देशी लोगों में इस घटना से हाहाकार मच गया। अमीचन्द का एक सम्बन्धी, जो सारे कारबार का प्रबन्धक था, अत्याचार से डरकर स्त्रियों को कहीं सुरक्षित स्थान में पहुँचाने का बन्दो- बस्त करने लगा। पर अंगरेजों ने जब यह सुना, तो अमीचन्द के घर पर धावा बोल दिया। अमीचन्द के यहाँ जगन्नाथ नामक एक बूढ़ा विश्वासी जमादार था । वह जाति का क्षत्रिय था। वह तत्काल अमीचन्द के नौकर बरक़न्दाज़ों को इकट्ठा करके महल के फाटक पर रक्षा करने को कमर-कस- कर तैयार होगया। अंगरेज़ों ने आकर फाटक पर लड़ाई-दङ्गा शुरू कर दिया। दोनों पक्षों की मार-काट से खून की नदी बह निकली। अन्त में एक- एक करके अमीचन्द के सिपाही धराशायी हुए। मानुषिक-शक्ति से जो सम्भव था, हुआ। अंगरेज़ बड़े जोरों से अन्तःपुर की ओर बढ़ने लगे। बूढ़े जगन्नाथ का पुराना क्षत्रिय-रक्त गर्म होगया। जिन आर्य-महिलाओं को भगवान भुवन-भास्कर भी नहीं देख सकते थे, वे क्या विदेशियों द्वारा दलित होंगी? स्वामी के परिवार की लज्जावती कुल-कामिनियाँ भी क्या बाँधकर विमियों की बन्दी की जायेंगी? बस, पल-भर में बिजली तरह तड़पकर उसने इधर-उधर से टूटे- फूटे काठ किवाड़ और लकड़ी एकत्र कर आग लगादी और नङ्गी-तलवार ले, अन्तःपुर में घुस गया, तथा एक-एक कर १३ महिलाओं का सिर काट- काटकर आग में डाल दिया। अन्त में पतिव्रताओं के खून से लाल-वही पवित्र-तलवार अपनी छाती में खोंस ली, और उसी रक्त की कीचड़ में गिर पड़ा। देखते-ही-देखते आग और धुएँ का तूफ़ान उठ खड़ा हुआ। बड़ी - -
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