२५० तडातड़ गोले बरसने लगे। अंगरेज़ अपना गोला-बारूद नष्ट कर, और अपनी झण्डी उखाड़, कलकत्ते लौट आये। यहाँ आकर, उन्होंने दो-एक और भी बढ़िया काम किये । कृष्ण वल्लभ, जो राजा राजवल्लभ का पुत्र था, और भागकर विद्रोह के अपराध में अंग- रेज़ों की शरण आरहा था, उसे इस डर से कैद कर लिया कि, कहीं यह क्षमा- आदि माँगकर नवाब से न मिल जाय । अमीचन्द कलकत्ते का एक प्रमुख व्यापारी था। सेठों में जैसी प्रतिष्ठा जगतसेठ की थी, व्यापारियों में वही दर्जा अमीचन्द का था। यह व्यक्ति भारतवर्ष के पश्चिमी प्रदेश का बनिया था। अंगरेज़ों ने उसी की सहायता से बंगाल में वाणिज्य-विस्तार का सुभीता पाया था। उसी की मार्फत अंगरेज़ गांव-गांव रुपया बाँटकर कपास तथा रेशमी वस्त्र की खरीद में खूब रुपया पैदा कर सके थे। उसकी सहायता न होती, तो अंगरेज़ लोगों को अपरिचित देश में अपनी शक्ति बढ़ाने और प्रतिष्ठा प्राप्त करने का मौका कदापि न मिलता। इस व्यक्ति के परिचय में इतिहासकार अक्षयकुमार लिखते हैं- "केवल व्यापारी कहने ही से अमीचन्द का परिचय नहीं मिल सकता। सैकड़ों विशाल-महलों से सजी हुई उसकी राजधानी, तरह-तरह की पुष्प- बेलियों से परिपूरित उसका वृहत्राज-भण्डार, सशस्त्र सैनिकों से सुसज्जित उसके महल का विशाल फाटक, देखकर औरों की तो बात क्या है स्वयं अगरेज़ उसे राजा मानते थे। विपत्ति पड़ने पर अंगरेज़ लोग सदा अमीचन्द की ही शरण लेते थे। अनेक बार अमीचन्द ही के अनुग्रह से अंगरेज़ों की इज्जत बची थी।" अंगरेज़ इतिहासकार 'अर्मी साहब' ने लिखा है- "अमीचन्द का महल बहुत ही आलीशान था। उसके भिन्न-भिन्न विभागों में सैकड़ों कर्मचारी हर वक्त काम किया करते थे । फाटक पर पर्याप्त सेना उसकी रक्षा के लिये तैयार रहती थी। वह कोई मामूली सौदागर न था, बल्कि राजाओं की भाँति बड़ी शान-शौक़त से रहता था। नवाब के दरबार में उसका बहुत आदर था, और नवाब उसे इतना मानते थे कि कोई आफ़त-मुसीबत आने पर नवाब-सरकार से किसी तरह लेने के लिये लोग प्रायः अमीचन्द की ही शरण लेते थे।" - की सहायता
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