२४८ 1 में जाकर मुचलका लिख देने की आज्ञा दी। वाट्स साहब ने जल्दी-जल्दी मुचलका लिख दिया । उसका अभिप्राय यह था- "कलकत्ते का क़िला गिरा देंगे। कुछ अपराधी, जो भागकर कलकत्त में छिप गये, उन्हें बाँधकर ला देंगे। बिना महसूल व्यापार करने की जो सनद बादशाह से कम्पनी ने पाई है, और उसके बहाने बहुतेरे अंगरेज़ों ने बिना महसूल व्यापार करके जो हानि पहुँचाई है, उसकी भर-पाई कर देंगे। कलकत्त के अंगरेज़ कर्मचारी हॉलवेल के अत्याचारों से-देशी प्रजा जो कठिन क्लेश भोग रही है, उसे, उनसे मुक्त करेंगे ," मुचलका लिखवाकर वाट्स और चेम्बर्स को उसकी शर्तों के पालन होने तक मुर्शिदाबाद में नजरबन्द करके नवाब शान्त हुए। परन्तु पन्द्रह दिन बीतने पर भी मुचलके की शर्तों का कलकत्ते वालों ने पालन नहीं किया । वाट्स की स्त्री और नवाब की माता में मेल-जोल था । वह अन्तः- पुर में आकर बेगम-मण्डली में 'हाय-दैया' मचाने-रोने-पीटने लगी। उसके करुण-विलापों से पिघलकर नवाब की माता ने पुत्र से दोनों को छोड़ देने का अनुरोध किया। माता की आज्ञा शिरोधार्य कर, नवाब को बिलकुल अनिच्छा से दोनों बन्दियों को छोड़ना पड़ा। शीघ्र ही नवाब को मालूम हुआ, कि अंगरेज़-लोग मुचलके की शर्तों का पालन नहीं करेंगे। अतएव उसने व्यर्थ आलस्य में समय न खो, कल- कत्त को एक दूत भेजा और स्वयं सेना ले चलने को तैयारी करने लगा ! अंगरेजों ने यह समाचार पाकर झटपट ढाका, बालेश्वर, जगदिया आदि स्थानों की कोठियों को सूचना दे दी कि, बहीखाता आदि समेट-समाट कर सुरक्षित स्थानों में चले जाओ। कलकत्ते में गवर्नर ड्रेक नगर-रक्षा के लिये सैन्य-संग्रह और बन्दोबस्त करने लगे। वास्तव में वे सिराज को अस्थायी नवाब समझते थे। उनका ख्याल था, अनेक घरेलू शत्रुओं से घिरा रहकर वह हमारे इस तुच्छ काम पर क्या दृष्टि डालेगा? इसके सिवा, अभी तक अपनी घूस और रिश्वत पर उन्हें बहुत भरोसा था। पर सिराजउद्दौला वास्तव में नीतिज्ञ पुरुष था। वह जानता था, कि मेरे सभी सरदार मेरे विरोधी हैं। वे बार-बार उसे कलकत्त न जाने की सलाह देते थे; क्योंकि प्रायः सभी नमकहराम और घूस खाये बैठे थे। पर 1
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