२३१ रवाना हुआ । लखनऊ पहुँचकर उसने गवाहों के हलफ़नामे के लिये, और बेग़मों को विद्रोह में सम्मिलित होने का फ़ैसला करके कलकत्त लौट गया। फ़ज़ाबाद के महलों को अँगरेजी फौजों ने घेर लिया और बेगमात को हुक्म दिया कि आप कैदी हैं, और आप तमाम जेवरात, सोना, चाँदी, जवाहरात दे दीजिए। जब उन्होंने इन्कार किया, तो बाहर की रसद बन्द कर दी गई, और वे भूखों मरने लगीं । अन्त में बेगमों ने पिटारों-पर- पिटारे और खजानों-पर-खजाने देना शुरू कर दिया। इस रकम का अन्दाज एक करोड़ रुपये के अनुमानतः होगा। इस घटना से अवध-भर में तहलका मच गया, और आसफुद्दौला का दिल टुकड़े-टुकड़े हो गया। इसके बाद हेस्टिग्स ने कर्नल हैनरी को नवाब के यहाँ भेजा और उसे बहराइच तथा गोरखपुर जिलों का कलक्टर बनवा दिया। इसने उन जिलों पर भयानक अत्याचार किया, और तीन वर्ष के अन्दर ही उसने पैंतालीस लाख रुपया कमा लिया। नवाब ने तंग होकर उसे बर्खास्त कर दिया। पर हेस्टिग्स ने फिर उसे नवाब के सिर मढ़ना चाहा। तब नवाब ने लिखा- "मैं हजरत मुहम्मद की क़सम खाकर कहता हूँ कि यदि आपने मेरे यहाँ किसी काम पर कर्नल हैनरी को भेजा तो मैं सल्तनत छोड़कर निकल जाऊँगा।" सर जॉन केमार तीसरे अँगरेज-गवर्नर थे । उन्होंने नवाब की पुरानी संधि को तोड़ डाला, और नवाब पर जोर दिया कि आप साड़े पाँच लाख रु० सालाना खर्च पर एक अँगरेजी पल्टन अपने यहाँ और रक्खें। नवाब 'सबसीडियरी सेना' के लिये पचास लाख रुपया सालाना प्रथम ही देता था। उसने इससे इन्कार कर दिया। तब अँगरेजों ने जबर्दस्ती वजीर झाऊलाल को पकड़कर कैद कर लिया। पीछे जब सर जान शोर लखनऊ पहुँचे तो नई फ़ौज का खर्चा नवाब के सिर मढ़ दिया। इस धींगा-मुश्ती से नवाब के दिल को सदमा पहुँचा। वह बीमार हो गया, और दवा खाने से भी इन्कार कर दिया। इसी रोग में उसकी मृत्यु हो गई। इन्होंने २३ वर्ष राज्य करके शरीर त्यागा । इनके बाद इनकी वसी यत पर मिरज़ा वजीरअली गद्दी पर बैठे । पर इन्होंने एक ही वर्ष में सब को
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