- २२५ "शहर पर कब्जा करने के बाद ३ दिन तक कम्पनी की फ़ौज नगर को लूटती रही। ख्वाजा हसन निज़ामी साहब ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि "एक दस्ता फ़ौज को इस काम के लिये नियुक्त किया गया कि जहाँ कहीं आबादी पाओ-मर्द, औरत और बच्चों को घर के असबाब सहित गिरफ्तार कर, ले आओ। आगे-आगे मर्द असबाब के गट्ठर सिर पर रक्खे हुए आते, और पीछे-पीछे उनकी औरतें रोती हुई पा-पैदल और बच्चों को साथ लिये हुए। जिन औरतों को कभी पैदल चलने की आदत न थी, वे ठोकरें खा-खाकर गिरती थीं, बच्चे गोद से गिर पड़ते थे और सिपाही क्रूरता के साथ उन्हें आगे चलने के लिये धकेलते थे। "जब वे लोग सामने पेश होते तो हुक्म दिया जाता कि असबाब में जितनी कीमती चीज़ हैं, उन्हें ढूँढ़कर जब्त करलो। व्यर्थ की चीजें इन्हें वापिस दे दो। यह हो चुकने पर दूसरा हुक्म होता कि इन्हें सिपाहियों की देख-रेख में लाहौरी दरवाजे तक ले जाओ और वे लोग शहर से बाहर धक्का देकर निकाल दिये जाते । "दिल्ली शहर के बाहर इस प्रकार हजारों मर्द, औरतें और बच्चे असहाय, नंगे-पाँव, नंगे-सिर, भूखे-प्यासे फिर रहे थे सैकड़ों माताएँ छोटे बच्चों का दुःख न देख सकने के कारण उन्हें अकेला छोड़कर कुएँ में डूब मरी। "नगर के अन्दर हजारों औरतें ऐसी थीं, जो बेइज्जती और मुसीबतों से बचने के लिये कुओं में गिरने लगीं। ये इतनी अधिक संख्या में गिरी कि डूबने को पानी न रहा। अनेक कुएँ औरतों की लाशों से भर गये थे। "इस प्रकार बदनसीब दिल्ली ने एक बार फिर भयानक दिन देखे । शाही खानदान पर बुरी बीती। बहुतों को तो फाँसी नसीब हुई। कुछ शाहजादे जेलखाने में भेज दिये गये । जब वे अपना काम पूरा न कर सकते थे-तो उन पर कोड़ों की मार पड़ती थी।" मिर्जा कोमास, जिसे अङ्गरेज-सरकार ने युवराज बनाना स्वीकार किया था, एक दिन दिल्ली के पास जंगल में घोड़े पर सवार नंगा खड़ा दिखाई दिया था। हडसन उसकी तलाश में घूम रहा था। उसके बाद आज तक उसका पता न लगा, कि कहाँ है ?
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