1 २१२ की पूर्ण-शक्ति संगठित होकर दिल्ली पर चढ़ आई । बादशाह ने आसफ़ को सहायता के लिये लिखा । वह हैदराबाद से भारी सैन्य लेकर चला । भूपाल में बाजीराव ने ८० हजार सवार लेकर उससे लोहा लिया। निज़ाम की पूरी हार हुई, और उसने मालवा प्रान्त मरहठों के हवाले कर दिया, तथा ५० लाख रुपये दिल्ली के खजाने से दिलाने स्वीकार कर लिये । बाजीराव ने मालवा सिन्धिया और होल्कर को हर्जाने में दे डाला। अब नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया । यह खुरासान का एक गड़रिया था, जिसने अपने बाहु-बल से ईरान का राज्य प्राप्त किया था। निजाम और सआदत ने उसे करनाल में रोकना चाहा, पर वे बुरी तरह हराये गये। दिल्ली के निकट पहुँचकर उसने बादशाह को लिखा-"दो करोड़ रुपये दो, वरना दिल्ली की ईंट से ईंट बजा दूंगा।" जब यह दूत दरबार में पहुँचा, तो बादशाह शराब पी रहा था, और शेर-ग़ज़लें गाई जा रही थीं। राजा स्वयं भी अपनी कविताएँ सुना रहे थे, और अमीर-उमरा उन्हें 'कलामुल्मुल्क लूकुलकलाह' कहकर झुक-झुककर सलाम कर रहे थे। दूत ने खत दिया तो बादशाह ने वजीर से कहा- “पढ़ो क्या है ?" वजीर ने पढ़ा और कहा-“हुजूर, ऐसे गुस्ताखी के अल्फ़ाज़ हैं कि जहाँपनाह के सुनने क़ाबिल नहीं।" बादशाह ने कहा- “ताहम- पढ़ो !” खत सुनकर कहा-"क्या यह मुमकिन है, कि यह शख्स दिल्ली की ईंट से ईंट बजा दे?" खुशामदी दरबारियों ने कहा-“हुजूर, क़तई नामुमकिन है।" तब बादशाह ने हुक्म दिया-"यह खत शराब की सुराही में डुबो दिया जाय, और इसके नाम पर एक-एक दौर चले।" जब दौर खतम हुआ तो दूत ने कहा- “हुजूर, बन्दे को क्या इरशाद है ? बादशाह ने हुक्म दिया-“पाँच सौ अशी और एक दुशाला इसे इनाम में दिया जाय।" दूत चला गया और नादिरशाह तूफ़ान की भाँति दिल्ली में घुस आया । तब रङ्गीले बादशाह की आँखें खुलीं। उसने नगर पर और किले पर अधिकार कर लिया। बादशाह ने सिर झुकाकर तख्त उसकी नज़र किया। कहते हैं कि उसने उसे हुक्म दिया–महल की तमाम बेगमात और शाहजादियाँ उसके सामने हाजिर की जायें। जब उसके हुक्म की तामील की गई और तमाम औरतें उसके सामने खड़ी कर दी गईं, तो उसने कमर
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