पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२१९

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१५ : मुग़ल-साम्राज्य का अन्त - औरङ्गजेब के बाद उसका पुत्र मुअज्जम आगरे में गद्दी पर बैठा। उसने अपनी उपाधि बहादुरशाह रखी। उसके छोटे भाई ने विद्रोह किया, पर वह कैद कर लिया गया। यह व्यक्ति उतना क्रूर तो न था, पर इस महान साम्राज्य को सम्हालने की शक्ति भी उसमें न थी। इस समय मुग़ल- साम्राज्य का विस्तार इतना था, जितना पहले कभी न हुआ था। इसने प्रजा को सन्तुष्ट करने की चेष्टा की। राजपूतों और मरहठों की स्वतन्त्रता को स्वीकार कर लिवा। मरहठों को मुग़ल-प्रान्तों से चौथ लेने का भी अधिकार दे दिया। परन्तु सिक्खों से उसका समझौता नहीं हो सका। सिक्ख लोग तूफानी ढंग से बढ़ रहे थे। उन्होंने पूर्वी पंजाब और सरहद को जीत लिया था। उनका नेता बन्दा बड़ी वीरता दिखा रहा था। बादशाह को इनके विरुद्ध स्वयं यात्रा करनी पड़ी। यह बादशाह तीन ही वर्ष राज्य करके लाहौर में मर गया। इसके बाद इसका छोटा पुत्र 'जहाँदारशाह' के नाम से गद्दी पर बैठा। गद्दी पर बैठते ही उसने सब सम्बन्धियों को तलवार के घाट उतारा । पर वह जितना ज़ालिम था, उतना-ही कायर भी था । वह सेना- पति जुल्फिकारखाँ के हाथ की कठपुतली था। जुल्फ़िक़ारखाँ अच्छा सेना- पति तो था, परन्तु अच्छा प्रबन्धक न था। अतः प्रजा में चारों तरफ़ कुप्रबन्ध तथा अत्याचारों के दौर होने लगे । दक्षिण में तो दाऊदखाँ ने हद करदी। अन्त में दक्षिण के हाकिम सैयद हसनअली और अवध के हाकिम अबदुल्ला ने जुल्फिकार को हटाकर बहादुरशाह के पोते फ़र्रु खसियर को २१०