२०२ क्यों नहीं होती, जो ज़नाने मकानों के लिये खोजा बनाता है। चिड़िया बाज़ार में अनेक प्रकार की अच्छी और सस्ती मिलती हैं। यहाँ हर प्रकार की छोटी मुर्गी, जिसका चमड़ा काला होता है, और जिसका नाम मैंने 'जिप्सी' रखा है, मिलती है। कबूतर भी मिलते हैं, पर बच्चे नहीं मिलते। इसका कारण यही है कि यहाँ के लोग बच्चों को मारना बड़ी निष्ठुरता का कार्य समझते हैं , तीतर भी मिलते हैं, जो हमारे देश के तीतरों से छोटे होते हैं। किन्तु जाल में फाँसकर और पिंजरे में बन्द करके लाये जाने के कारण वे ऐसे अच्छे नहीं होते जैसे अनेक पशु । यही अवस्था यहाँ मुर्गियों और खरगोशों की होती है, जो जीवित पकड़े जाकर पिंजरों में भरे हुए शहर में आते हैं। देहली के मछुए अपने कार्य में कुछ ऐसे चतुर नहीं हैं । पर फिर भी मछलियाँ कभी-कभी बाजारों में अच्छी बिकती हैं- विशेषकर सिंघाड़ा, जो अपने यहाँ की 'कार्य' के समान होती है-अच्छी होती है। जाड़े के दिनों में मछुए मछलियाँ कम पकड़ते हैं। कारण कि वहाँ के लोग सर्दी से उतना ही डरते हैं, जितने हम लोग जाड़े के दिनों में गर्मी से ! यदि कोई मछली बाजार में दिखलाई दे, तो ख्वाजासरा उसे स्वयं खरीद लेने हैं । वे लोग इसे बहुत पसन्द करते हैं। परन्तु इसका कोई विशेष कारण मुझे अब तक मालूम नहीं हुआ। अमीर लोग अपने कोड़ों के बल, जो उनके दरवाजे पर इसी कार्य के लिये लटकते रहते हैं-जाड़े के दिनों में प्रायः मछली पकड़वाया करते हैं। इसमें सन्देह नहीं, कि यहाँ के धनी लोगों को हमेशा अच्छी चीजें मिला करती हैं, पर इसका कारण केवल रुपया और उनके पास बहुत-से नौकरों का रहना ही है। देहली में साधारण स्थिति के लोग नहीं रहते। बड़े-बड़े अमीर, उमरा और रईस बिल्कुल ही कम हैं । ऐसी हैसियत के लोग-जिनका जीवन कष्ट से बीतता है, अधिक रहते हैं । यद्यपि मुझे यहाँ अच्छा वेतन मिलता है, परन्तु सामान जो मिलता भी है, वह बहुत ही रद्दी, और केवल वही, जोकि अमीर लोगों के नापसन्द होने के कारण बच रहता है। मदिरा, जो हमारे यहाँ भोजन का प्रधान अङ्ग है-दिल्ली की किसी दुकान पर नहीं मिलती। जो मदिरा यहाँ देशी अंगूर की बन सकती है, वह भी नहीं मिलती; क्योंकि मुसलमानों की क़ुरान और हिन्दुओं के शास्त्रों में उसका पीना वर्जित है। मुग़ल-राज्य
पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२११
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।