पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२१०

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२०१ स्वादिष्ट हो जाती है। यद्यपि वह बहुत फूल जाती है, पर स्वाद उसका जली हुई रोटी-सा होता है । यह रोटी साधारण से लेकर विलायती चपाती की तरह होती है, पर पैरिस की 'गैलबिन' (एक प्रकार की रोटी)-सी स्वादिष्ट नहीं होती। बाज़ार में बहुत तरह का कबाब और कलिया बिकता है, पर मुझे विश्वास नहीं कि वह किसी अच्छे जानवर का माँस हो; क्योंकि मैं जानता हूँ कि कभी-कभी यह माँस ऊँट, घोड़े या बीमार पशुओं का भी होता है, और इसीलिये जो चीजें अपने मकान पर न बनाई जायँ, वे कभी खाने और व्यवहार में लाने योग्य नहीं होतीं। दिल्ली की प्रत्येक गली में माँस बिकता है। पर कभी बकरी के धोखे में भेड़ का भी माँस दे देते हैं। इसलिये इन सबों की अच्छी तरह देख-भालकर लेना-खाना चाहिये। यद्यपि बकरी व अन्य ऐसे पशुओं के माँस का स्वाद बुरा नहीं होता, पर वह कुछ गर्म होता है, तथा बादी करता और देर में पचता है। बकरी के बच्चे का माँस सब से अच्छा होता है। पर वह बाज़ार में नहीं मिलता। इससे जीवित बच्चा खरीदना पड़ता है। एक कठिनता तो यहाँ यह है कि सुबह का माँस शाम तक नहीं ठहरता। दूसरी यह कि जानवर दुबले मिलते हैं, जिससे उनके माँस का स्वाद बिगड़ जाता है। बाज़ार में कसाइयों की दूकानों पर भी दुबली बकरियों का माँस मिलता है, जो बहुधा कठोर होता है। पर मैं इन सब कष्टों से बचा हुआ हूँ। कारण यह है कि मैं इन लोगों के फन्दों से परिचित हूँ, और इसलिये अपने खाने का मूल्य बादशाह के बावर्चीखाने के दरोगा के पास किले में अपने नौकर के हाथ भेज देता हूँ, और वह मुझे खुशी से अच्छा भोजन देते हैं । यद्यपि इन चीज़ों पर उनकी लागत बहुत कम आती है, पर मैं उन्हें मूल्य कुछ अधिक देता हूँ। मैंने एक दिन अपने आग़ा से इस चोरी और चालाकी के विषय में कहा भी जिस पर वह बहुत हँसा। फ्रान्स में मैं ।।) में बादशाही भोजन कर लिया करता था । पर यहाँ यदि ऐसी चालाकी न करता, तो कदाचित् ३७५) रु० में जो मुझे मेरे आग़ा की सरकार से मिलते हैं, मेरा गुजारा कभी न होता और मैं भूखों मर जाता। "इस देश के लोगों में दया अधिक है, और इसी कारण मुर्गी बाज़ार में दिखाई नहीं देती। पर नहीं मालूम, यह दया उन मनुष्यों के भाग्य में -