पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२०७

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१६८ कि पुरुषों के सामने मुंह छिपाने के सिवा और कुछ इनसे होता ही नहीं। इसीलिये, जो स्त्रियाँ आग लगने के कारण जल मरी, उनमें इतना साहस नहीं था, कि भागकर बच जायें। इन कच्चे और घास-फूस के मकानों के कारण ही मैं समझता हूँ, कि देहली कुछ देहातों का समूह या फ़ौज की छावनी है, पर भेद इतना है कि यहाँ कुछ थोड़ा-सा सामान आराम का भी है। "अमीरों के मकान प्रायः नदी के किनारे और शहर के बाहर हैं । इस गरम देश में भी वही मकान अच्छा समझा जाता है, जिसमें सब प्रकार का आराम मिले, और चारों ओर से-विशेषतया उत्तर की दिशा से-खुली हवा आती हो। यहाँ वही मकान अच्छे कहे जाते हैं, जिनमें एक अच्छा बाग़, पेड़ और हौज हो, और दालान या दरवाज़े में छोटे-छोटे फ़ौव्वारे या तहखाने हों। इन तहखानों में बड़े-बड़े पंखे लगे होते हैं। और गर्मी के दिनों में सन्ध्या को (दोपहर से चार या पांच बजे तक हवा ऐसी गर्म होती है, कि साँस नहीं लिया जाता) यहाँ बहुत आराम मिलता है, पर तहखानों की अपेक्षा लोग, खसखानों को अधिक पसन्द करते हैं। यह छोटे-छोटे खास कमरे होते हैं, जो एक प्रकार की खुशबूदार घास की जड़ों से, बाग़ में हौज़ के निकट इस अभिप्राय से बनाये जाते हैं, कि नौकर चमड़े की डोलचियों में भर-भरकर अच्छी तरह उन पर पानी छिड़कें, और उन्हें तर कर सकें। "जिस मकान के चारों ओर ऊँचे-ऊँचे दालान हों, और वे किसी बाग़ के अन्दर बने हों तो बहुत अधिक पसन्द किये जाते हैं। वास्तव में कोई बढ़िया मकान ऐसा नहीं है, जिसमें घरवालों के सोने के लिये आँगन न हो। वर्षा या आँधी के समय या सवेरे जब ठण्डी हवा चलती हो-ओस पड़ने लगती हो, तो पलँग को खसकाकर अन्दर कर लेते हैं। यह ओस यद्यपि अधिक नहीं होती, तो भी बदन में पैठ जाती है, तो कभी-कमी हाथ-पाँव ऐंठ जाते हैं। "अच्छे घरों में बैठने के लिये फ़र्श के ऊपर रुई का एक भारी और चार अंगुल मोटा गद्दा बिछा रहता है, जिस पर गर्मी के दिनों में अच्छा कपड़ा (चाँदनी) और जाड़े के दिनों में रेशमी कालीन बिछाया जाता है।