पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२०६

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१६७ 1 और सराफ़े का अपना-अपना काम करते हैं, और ग्राहकों को माल दिखाते हैं। इन बराम्दों के पीछे असबाब-आदि रखने लिये कोठियाँ बनी हुई हैं, जिनमें रात के समय सारा असबाब रख दिया जाता है। इनके ऊपर व्यापा- रियों के रहने के लिये मकान बने हुए हैं, जो बाजार में देखने पर बहुत-ही सुन्दर मालूम होते हैं । ये मकान हवादार होते हैं, और इनमें गर्द या धूल बिलकुल नहीं जाती। "यद्यपि शहर के भिन्न-भिन्न भागों में भी दुकानों के ऊपर इसी प्रकार के मकान होते हैं, पर वे इतने छोटे और नीचे होते हैं, कि बाजार से भली भाँति दिखाई नहीं देते । धनिक व्यापारी दूकानों पर नहीं.सोते । वरन् रात को काम कर चुकने पर अपने अपने मकानों को, जो शहर में होते हैं- चले जाते हैं। "इनके अतिरिक्त पाँच और बाजार हैं । यद्यपि उनकी बनावट आदि वैसी ही है, पर वे इतने लम्बे और सीधे नहीं हैं। और भी बहुत-से छोटे छोटे बाजार हैं, जो एक दूसरे को काटते हुए चले जाते हैं । यद्यपि उनके सामने की इमारतें महराब के ढंग की हैं, तथापि वे ऐसे लोगों के हाथ की बनी हुई होने के कारण, जिन्हें इमारत के सुडौल होने का कोई विचार नहीं था, इतनी सुन्दर, चौड़ी और सीधी नहीं हैं, जितने वे बाजार हैं, जिनका वर्णन मैंने अभी ऊपर किया है। शहर के गली-कूचों में मन्सबदारों, हाकिमों और धनी व्यापारियों के मकान हैं । उनमें भी बहुधा अच्छे और सुन्दर है। "ईंट या पत्थर के बनेक मान बहुत ही कम हैं; कच्चे या घास-फूस के घर अधिक हैं । इतना होने पर भी वे सुन्दर और हवादार हैं। बहुत-से मकानों में चौक और बाग़ होते हैं। इनमें सब प्रकार की सुख-सामिग्री वर्त- मान रहती है। जो मकान घास-फूस के बने होते हैं, वे अच्छी सफ़ेदी किये हुए होते हैं। इनमें साधारण नौकर, खिदमतगार और नानबाई आदि जो बादशाह के लश्कर के साथ जाया करते हैं-रहते हैं। इन्हीं के कारण नगर में प्रायः आग लगती है। गत वर्ष तीन बार ऐसी आग लगी कि तेज हवा के कारण, जो यहाँ गरमी के दिनों में चला करती है, कोई ६० हजार छप्पर जलकर खाक हो गये, और कुछ ऊँट, घोड़े तथा परदेदार स्त्रियाँ भी इसमें जल-भुनकर राख हो गई। ये स्त्रियाँ कुछ ऐसी लजीली होती हैं,