१६५ 1 क़िले की दीवार अपने पुराने ढंग के गोल बुों के कारण शहर- पनाह से मिलती-जुलती है। इसीलिये शहरपनाह की अपेक्षा यह अधिक सुन्दर है। साथ ही यह शहरपनाह से ऊँची और सुदृढ़ भी है। इस पर छोटी तोपें चढ़ी हुई हैं, जिनका मुह नगर की ओर है। नदी की ओर को छोड़कर क़िले की सब ओर गहरी और पक्की खाई बनी हुई है। इसके बाँध मजबूत पत्थर के बने हुए हैं। यह खाई हमेशा पानी से भरी रहती है, और इसमें मछलियाँ बहुत अधिकता से हैं । यद्यपि यह इमारत देखने में बड़ी मालूम होती है, पर वास्तव में यह दृढ़ नहीं है। मेरी समझ में एक साधारण तोपखाना इसे गिरा सकता है। इस खाई के निकट एक बहुत बड़ा बाग़ है, जिसमें बहुत सुन्दर और अच्छे फूल होते हैं। किले की लाल रंग की दीवार सामने होने के कारण यह बाग़ बहुत ही सुन्दर मालूम होता है। इसके सामने शाही चौक है, जिसके एक ओर क़िले का दरवाज़ा है, और दूसरी ओर शहर के दो बड़े बाजार आकर समाप्त होते हैं। जो नौकर प्रति सप्ताह यहाँ चौकी देने आते हैं, उनके खेमे इसी मैदान में लगाये जाते हैं, क्योंकि ये लोग, जो एक प्रकार के छोटे बादशाह होते हैं, क़िले में रहना स्वीकार नहीं करते, और इसीलिये किले में उमरा और मन्सबदारों का पहरा होता है। इस जगह सबेरे बादशाहों घोड़े फिराये जाते हैं; और वे उसके निकट ही एक बड़े अस्तबल में रहते हैं। इसी स्थान पर फ़ौज का मीरबख्श नये सवारों के घोड़ों को देखता-भालता है, और तुर्की या और अच्छे मजबूत घोड़ों की रान पर बादशाही तथा उस अमीर का निशान लगवा देता है, जिसकी फौज में वे नौकर हों। इससे यह लाभ होता है, कि पेश करने के समय नये सवार इन्हीं घोड़ों को लेकर पेश नहीं कर सकते। इसी स्थान पर तरह-तरह की चीजों की बिक्री के लिये पेंठ लगती है। इसमें पेरिस के 'पॉण्ट नि-योफ़' की तरह भानमती का-सा खेल दिखानेवाले हिन्दू तथा मुसलमान नजूमी इकट्ठ होते हैं। ये झूठे ज्योतिषी धूप में एक मैला कालीन का टुकड़ा बिछाये बैठे रहते हैं। उनके सामने एक बड़ी सी किताब खुलो पड़ी रहती है, जिसमें ग्रहों के चित्र बने होते हैं, और सामने रमल फेंकने का पाँसा होता है। इसी प्रकार ये लोग राह- चलतों को धोखा देते और फुसलाते हैं। लोग उन्हें विद्वान् समझकर उनसे
पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२०४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।