१८४ भूल या ग़लतबयानी करने पर सिर काटने के लिये जल्लाद उसके पीछे खड़ा रहता है । जब वह बात खत्म हो चुकती है, तो क़ाजी को खुद बाद- शाह सिर से पैर तक के वस्त्र प्रदान करता है। मस्जिद से जिस समय चलते हैं, तो सीढ़ियों के नीचे कुरबानी के लिये एक ऊँट तैयार खड़ा रहता है । बादशाह अपनी सवारी पर सवार होकर उसकी गर्दन पर नेजे से वार करता है । यदि स्वयं ऐसा न करना चाहे, तो अपने पुत्रों में किसी को ऐसा करने की आज्ञा देता है। बहुधा जब शाहआलम दरबार में होता था, तो वह इस रस्म या कुरबानी को-जैसा कि यह लोग इसे कहते आये हैं- किया करता था। इसके बाद गुलाम ऊँट को जमीन पर लिटाकर इसका गोश्त इस तरह बाँट देता है, मानों यह किसी महात्मा का प्रसाद है। ख्वाजासरों को–जिनका मैंने ऊपर नाम दिया है-नाजिर यानी सुपरिण्टेण्डेन्ट का खिताब मिला हुआ है । बादशाह, शाहजादे, शाहजा- दियाँ, बेगलात उन पर विश्वास करते हैं, और हर-एक बेगम, शहजादी या महल की अन्य स्त्री का एक-एक नाजिर होता है, जो इसकी जायदाद, जागीर और आमदनी का हिसाब-किताब रखता है, अथवा इनका प्रबन्ध करता है । तमाम अफ़सरों, नौकरों और गुलामों को अपने तमाम कामों और तमाम कपड़े आदि का हिसाब इन ख्वाजासराओं को देना होता है। बहुधा नाजिर की अधीनता में भी अन्य कई वृद्ध और जवान ख्वाजासरा होते हैं, जिनका महल में आगमन लगा रहता है। इनमें से कोई चिट्ठी- पत्री आदि ले जाता है, और कइयों पर इधर-उधर के बहुत-से कामों की जिम्मेवारी होती है। कई-एक का फाटक पर यह काम होता है कि वह महल के अन्दर जाने वालों को देख लें, और इस बात की सावधानी रखें कि महल में शराब, भंग, अफीम या अन्य कोई नशे की चीज न जाने पाये, क्योंकि महल की तमाम स्त्रियाँ ऐसी-ऐसी नशीली चीजों को बहुत चाहती हैं । न महल के अन्दर गाजर, मूली, बैंगन और ऐसी सब्जी, जिनका नाम न लेना चाहिए, प्रवेश कहीं हो सकतीं। जब कोई स्त्री किसी को मिलने महल में आये-तो, यदि वह परिचित न हो, तो बिना इस बात का ख्याल किये कि उसके पद की मर्यादा क्या है, उसकी तलाशी ली जाती है। इतनी कड़ाई का कारण यह है कि ख्वाजासरों को इस बात का भय रहता है कि
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