१८२ - - "जब बादशाह शिकार खेलने को या मस्जिद में जाते हैं, तब इन छोटे शाहज़ादों को साथ ले जाते हैं। इस तरह ये महल के अन्दर सोलह साल की आयु तक रहते तथा शिक्षा पाते हैं। इसके बाद इनकी शादी की जाती है। ये आयु-भर महल ही में रहते हैं, और इन्हें खासी पेन्शन मिलती है। शादी के बाद शाहज़ादों को अलग महल प्रदान किया जाता है इनके पास बहुत-सी आमदनी और दास-दासियों की एक बड़ी संख्या हो जाती है परन्तु अच्छे-अच्छे विद्वान् और जासूस सदा इनके साथ रहते हैं, जो बादशाह को सब बातों की सूचना देते रहते हैं । जब यह शाहजादे अपने- अपने महल में रहते हैं तो वे स्वयं उपरोक्त विधि से अपनी साल गिरह और त्यौहार मनाते हैं, और उनके अफ़सरों को उन्हें उसी प्रकार भेंट आदि देनी पड़ती है । सन् १६६६ ई० में, जब बादशाह आलमशाह औरङ्गा- बाद में अपनी वर्ष-गाँठ की प्रसन्नता मना रहा था, तो उसकी माता ने कई बहुमूल्य भेंटें-जिनका मूल्य ५० हजार के लगभग था -उसे दीं, परन्तु इस पर भी उसने अप्रसन्न होकर शिकायत की, कि दूसरे वर्षों की अपेक्षा इस साल माता ने बहुत कंजूसी दिखाई है। इस तरह पर मल्का को विवश और भेंट देनी पड़ी। महल की आम शाहज़ादियों ने भी इसी तरह अपनी शक्ति के अनुसार भेंट दी। इन अवसरों पर इन बातों का यहाँ तक ख्याल रखा जाता है, कि प्रत्येक आदमी, चाहे वह बड़ा आदमी हो, चाहे मामूली हैसियत का, अपनी सामर्थ्य के अनुसार अवश्य कुछ-न-कुछ ले जाता है। उन लोगों का वर्ष २२ मार्च को आरम्भ होता है, और उस दिन-जैसाकि कि मैं वर्णन कर चुका हूँ, एक भारी महोत्सव मनाया जाता है। महल के इर्द-गिर्द और भीतर-बाहर बहुमूल्य पर्दे लटकाये जाते हैं, जो शाहजहाँ की आज्ञा से तख्त ताऊस के साथ तैयार किये गये थे। यह तख्त बहुत मूल्यवान् है, परन्तु बनाने वाले के भाग्य में इस पर बैठना नहीं लिखा था। औरङ्ग- जेब ने ही पहिले-पहल अपने राजतिलक के दिन इसका प्रयोग किया था। यह एक ऊँची छत के कमरे में रखा हुआ है, और उत्सव के दिन बादशाह इस पर विराजता है। उस दिन का यह दस्तूर है कि हिन्दुस्तान के इससे प्रथम के बादशाहों ने जो तख्त काम में लिये थे, वे इस तख्त के चारों तरफ-ज़रा नीचे, रखे जाते हैं। 1
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