१७८ क्योंकि वे कभी मृत्यु का विचार भी नहीं करतीं । सारे महल में ऐसा शब्द कभी किसी के मुंह से नहीं सुना जाता, और न कोई ऐसी घटना ही होती है, जिससे मृत्यु का भय इनके सम्मुख आ सके । जब इनमें से कोई रोगिनी हो जाती है, तो उसे एक सुन्दर महल में ले जाते हैं, जिसको बीमारखाना कहते हैं । यहाँ पर अत्यन्त सावधानी से उनकी चिकित्सा और परीक्षा होती है, और वहाँ से वे आरोग्य-लाभ करके या मरकर ही बाहर आती हैं। यदि रोगी ऐसा हो, जिसके लिये बादशाह के हृदय में खास इज्जत हो, तो रोग के प्रारम्भ में वह एक बार उसकी खबर लेने आते हैं । परन्तु अगर वह जल्द आरोग्य न हो, तो फिर उसके पास नहीं जाते, बल्कि समय पर किसी गुलाम को भेजकर उसके समाचार मँगा लेते हैं। यद्यपि महल की स्त्रियाँ, जैसा कि मैं ऊपर लिख चुका हूँ, प्रत्येक प्रकार का ठाठ-बाट, दिखावा करती और बड़ी नज़ाकत से रहती हैं, पर औरङ्गजेब इसमें कोई दखल नहीं देता। क्योंकि सब लोग रूपवती स्त्रियों के बड़े शौक़ीन होते हैं, और जगत् में यही एक चीज है, जो प्रसन्नता प्रदान कर सकती है। मुग़ल-सम्राटों का तो यह एक नियम ही हो गया है। परन्तु वर्तमान बाद- शाह अपने पिता शाहजहाँ की तरह ठाठ-बाट से नहीं रहता। इसके कपड़े अत्यन्त सादे होते हैं पगड़ी में साफ़ तुर्रा और छाती पर एक हार के सिवाय यह कोई जेवर नहीं पहनता। यद्यपि उसकी सन्तान–बल्कि चौथी पीढ़ी तक सब-के-सब, मोतियों की मालाएँ पहनते हैं। परन्तु वह इस ओर से उदासीन है। इसके वस्त्र अत्यन्त मामूली क़ीमत के कपड़े के होते हैं । यहाँ तक कि इस पर १०) से ज्यादा लागत नहीं होती। जितने जवाहरात वह पहनता है, उनके नाम किसी-न-किसी नक्षत्र पर रखे हुए होते हैं । जैसे सूर्य, चन्द्र या कोई और नक्षत्र-जैसा हकीमों ने बतला दिया है। क्योंकि, वह जब कोई जवाहरात माँगना चाहे, तो वह यह नहीं चाहता कि असली नाम लेकर पत्थर माँगे, इसलिये यह कहता है-'महताब लाओ।' 'आफ़ताब लाओ।' इन जवाहरातों में से बादशाह को कई तो मुग़ल सम्राट् तैमूर आदि अपनी पूर्वजों से विरासत में मिले हैं। साथ ही कई-एक गोलकुण्डा या बीजापुर की रियासतों से प्राप्त हुए हैं। महल में छोटे-बड़े सब प्रकार के लालों की यद्यपि कमी नहीं-फिर भी जवाहरात की खरीद बराबर जारी रहती
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