१६३ बाद औरङ्गजेब को राजपूताने की ओर देखने का मृत्यु तक साहस नहीं हुआ। तीसरी शक्ति, मुग़लों के विरुद्ध खड़ी हुई, सिक्खों की थी। यह प्रथम एक धार्मिक समुदाय था। इसका जन्म एक शक्तिशाली साधु पुरुष नानक ने किया। इस धर्म का मुख्य उद्देश्य भिन्न-भिन्न जाति और धर्म के लोगों को एक होकर रहने का था। उसने सब ढकोसलों और भेद-भावों की तीव्र निन्दा की। अद्वितीय ईश्वर की उपासना ही उसका मुख्य उद्देश्य था। 1 - नानक के बाद कई गुरु गद्दी पर बैठे, और वे सब संयमित चित्त- योगी की भाँति रहते थे। धीरे-धीरे मुसलमान बादशाहों ने उन पर अत्याचार आरम्भ किये । वे वध स्थल में पशु की भाँति ले जाये जाते और उनका वध लोहे के पीजरे में बन्द कर, निर्दयता से किया जाता। अर्जुन गुरु को जहाँगीर ने कैद किया, और उन्हें आर्त-यातनाओं से कुल्हाड़े से मारा गया। इस घटना के बाद सिक्ख उत्तेजित हो गये, और उनके पुत्र हरगोविन्द गद्दी पर बैठते ही मुसलमानों के विरोधी हो गये। उन्होंने सिक्खों को हथियार धारण की शिक्षा दी। वह स्वयं दो तलवारें बाँधते थे । जब कोई उनसे इसका कारण पूछता तो वह उत्तजित स्वर में कहते–'एक पिता के बदले के लिये और दूसरी मुग़ल साम्राज्य का ध्वंस करने के लिये ।' इनकी मृत्यु के पीछे उनके पोते हरराम गुरु हुए। फिर हरकिशन गुरु हुए। उसके बाद गुरु तेगबहादुर हुए । यही वह समय था, जब औरङ्गजेब के अत्याचारों से भारत कम्पायमान हो रहा था। उनके पास काश्मीर के कुछ पीड़ित ब्राह्मण भागकर आये और दुहाई दी। तेगबहादुर ने गम्भीर विचार कर, एक भयानक संकल्प किया, और उन्हें यही पढ़ाकर दिल्ली भेजा। उन्होंने दिल्ली आकर कहा-'यदि आप तेगबहादुर को मुसलमान बनालें, तो हम खुशी से मुसलमान हो जायेंगे।' तेगबहादुर के प्रतिद्वन्दी रामराय ने भी बादशाह को इसके लिये उत्त जित किया। तब बादशाह ने तेगबहादुर पर सेना भेजी, और वे बन्दी करके दिल्ली ले आये गये । यहाँ भरे दरबार में बादशाह ने कहा-“कुछ करामात दिखाओ !" गुरु ने कहा-"हमारा धर्म सर्व-शक्तिमान ईश्वर की उपासना करना है। परन्तु तुम्हें हम करामात
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