१६२ लिया। टूट पड़े । राठौरों पर इस बादशाह ने बहुत जुल्म किये थे। उनकी तलवारें खून की प्यासी हो रही थीं। दुर्गादास और राजसिंह ने आज बढ़-बढ़ कर बदले लिये । सम्राट् की भारी तोपें, जिनके गोलन्दाज़ सुयोग्य फ्रान्सीसी थे, धरी रह गयीं। राजपूतों ने मुग़लों को बर्थी पर धर लिया। अन्त में बाद- शाह हार कर भाग गया। उसका बहुत-सा सामान लूट लिया गया । उसका झण्डा, हाथी और बहुत सा सामान राजपूतों के हाथ लगे। उधर भीम खाली नहीं बैठा था। उसने गुजरात को भेदकर ईडर पर अधिकार कर लिया, और मुग़ल किलेदारों को मार भगाया। फिर उसने पाटन, सिद्धपुर आदि नगरों को लूटा और सूरत की ओर बढ़ा। दूसरी ओर राणा के मन्त्री दयालशाह ने मालवे को लूट सारंगपुर, देवास, सारौन, माँडू, उज्जैन और चन्देरी लूट लिये गये । तमाम क़िले कब्जे में कर लिये—फौजों को काट डाला, मालवा उजाड़ हो गया ! वहाँ की अटूट सम्पत्ति लूटकर राणा के चरणों में रख दी गई। बादशाह अकबर और अजीम को बारह हजार सेना-सहित चित्तौड़ पर अधिकार करने को छोड़ गया था। उस पर जयसिंह और दयालशाह ने आक्रमण कर, उसे रणथम्भोर तक खदेड़ दिया। इस प्रकार प्रकाण्ड मुग़ल सेना सर्वथा मेवाड़ से निकाल बाहर कर दी गई। अब राणा मारवाड़ की तरफ़ झुके । वहाँ जसवन्त की रानी बड़े हौसले से शाही सेना का मुकाबला कर रही थी, जो नगर पर दखल करने को आई थी। राणा ने गनौरा नामक स्थान पर मुग़लों से लोहा लिया। इस युद्ध में राजपूतों ने एक भयानक हास्य मुग़लों से किया-पाँच सौ ऊँट मुग़लों से छीन लिये। उन पर बहुत-से गड़े-गूदड़ लपेट, तेल से तर कर, उन पर मशालें जलाकर उन्हें मुग़ल छावनी में हाँक दिया। पीछे-पीछे राठौर चले । मुग़ल छावनी में उन जलते हुए ऊँटों ने यह आफ़त मचाई कि हाहाकार मच गया, और राजपूतों ने मुग़ल सेना को नष्ट कर दिया। इसके बाद बीकानेर के राजा के उद्योग से राणा और राजसिंह में सन्धि चर्चा चली। पर, इसी बीच में राजसिंह की मृत्यु हो गई, और फिर बादशाह और जयसिंह के बीच, जो राणा हुए, सन्धि हुई । इस सन्धि के -
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