मक्का से कुछ मीलों के अन्तर पर थी, चला गया और ध्यान तथा प्रार्थना में लग गया। उस एकान्त विचार से उसने एक सिद्धान्त निकाला, अर्थात् ईश्वर की अद्वैतता। एक खजूर के वृक्ष की पीठ से टिककर उसने इस विषय के विचार अपने मित्रों और पड़ोसियों को सुनाये और यह भी कह दिया कि इसी सिद्धान्त के प्रचार में मैं अपना सारा जीवन लगा दूँगा। उस समय से मृत्यु तक उसने अपनी उँगली में अँगूठी पहनी, जिस पर खुदा था—'मुहम्मद ईश्वर का दूत।' बहुत दिनों तक उपवास और एकान्तवास करने तथा मानसिक चिन्ता से अवश्य मति भ्रम हो जाता है, यह वैद्य लोग भली-भाँति जानते हैं। इसी हालत में मुहम्मद को प्रायः अन्तरिक्ष वाणियाँ सुनाई पड़ती थीं। फ़रिश्ते उसके सामने आते थे। एक दिन स्वप्न में जिबराइल नाम का फ़रिश्ता उसे अपने साथ आकाश पर ले गया, जहाँ मुहम्मद निर्भय उस भयङ्कर घटा में चला गया, जो सदैव सर्व शक्तिमान् ईश्वर को छिपाये रहती है। ईश्वर का ठण्डा हाथ उसके कन्धे पर छू जाने से उसका चित्त काँपा।
शुरू में उसके उपदेश का बहुत विरोध हुआ और उसे कुछ भी सफ- लता न हुई। मूर्ति-पूजकों ने उसे मक्का से निकाल दिया। तब उसने मदीने में, जहाँ बहुत से यहूदी और नेस्टर पन्थ वाले रहते थे, शरण ली। नेस्टरपन्थी तुरन्त उसके मतवालम्बी हो गये। छः वर्षों में उसने केवल १,५०० चेले बनाये परन्तु तीन छोटी लड़ाइयों में उसने जान लिया कि उसका अत्यन्त विश्वासप्रद तर्क उसकी तलवार है। ये तीनों छोटी लड़ाइयाँ पीछे से बीडर, ओहूद और नशन्स के बड़े युद्ध प्रख्यात किये गये। उसके बाद मुहम्मद बहुधा कहा करता था कि 'बहिश्त तलवार के साये के नीचे पाया जायगा।'
कई एक उत्तम आक्रमणों द्वारा उसने अपने शत्रुओं को पूर्ण रूप से पराजित किया। अरब की मूर्ति-पूजा जड़ से नष्ट हो गई और यह भी मान लिया गया कि वह ईश्वर का दूत है।
जब वह शक्ति और ख्याति को पराकाष्ठा को पहुँचा, तब वह अन्तिम बार मदीने से मक्का की ओर गया। उसके साथ एक लाख चौदह हज़ार भक्त फूलों के गजरों से सजे हुए ऊँटों पर फहराते झण्डे लिये हुए चले। उसके साथ ७० ऊँट बलिदान के लिये थे। उस समय काबे के मन्दिर में ३६० मूर्तियाँ थीं जो एक वर्ष के दिनों की चिह्न थीं। यह मन्दिर प्राचीन